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जीवन की ही जय है

jiwan ki hi jay hai

मैथिलीशरण गुप्त

अन्य

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मैथिलीशरण गुप्त

जीवन की ही जय है

मैथिलीशरण गुप्त

मृषा मृत्यु का भय है

जीवन की ही जय है

जीवन ही जड़ जमा रहा है

नीत नव वैभव कमा रहा है

पिता पुत्र में समा रहा है

यह आत्मा अक्षय है

जीवन की ही जय है।

नया जन्म ही जग पाता है,

मरण मूढ़-सा रह जाता है,

एक बीज सौ उपजाता है।

स्रष्टा बड़ा सदय है,

जीवन की ही जय है।

जीवन पर सौ बार मरूँ मैं,

क्या इस धन को गाड़ धरूँ मैं?

यदि उचित उपयोग करूँ मैं,

तो फिर महाप्रलय है,

जीवन की ही जय है।

स्रोत :
  • पुस्तक : मैथिलीशरण गुप्त ग्रंथावली, खंड-12 (पृष्ठ 201)
  • संपादक : कृष्णादत्त पालीवाल
  • रचनाकार : मैथिलीशरण गुप्त
  • प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
  • संस्करण : 2008

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