जिन स्त्रियों ने मुझे प्रेम किया

jin striyon ne mujhe prem kiya

पंकज प्रखर

पंकज प्रखर

जिन स्त्रियों ने मुझे प्रेम किया

पंकज प्रखर

जिन स्त्रियों ने मुझे प्रेम किया

मेरे होंठ चूमे

भरी दोपहरी में मेरे माथे पर

उग आई पसीने की बूँदों को

अपने नर्म आँचल से सुखाया

दुःख में मेरा हाल पूछा और

बदले में उन्हें झड़प सुनने को मिली

फिर भी बीमार हुआ तो

मेरे स्वस्थ होने की कामना की

और मेरी उदास आँखों को चूमकर रौशनी भर दी

अपने हृदय का सारा वात्सल्य

उड़ेल दिया मेरे माथे पर

जब मैं भीतर ही भीतर ख़ाली हो रहा था।

मैं सोचता हूँ—

इस शाम में वे कहाँ होंगी!

ये पुकारती हवा जो मेरे कमरे के परदों से

गुफ़्तगू करती है और वापिस लौट जाती है

इन्हें मालूम तो होगा पता उनका!

इस बोझिल साँझ में जब वक़्त

धीरे-धीरे मेरे कमरे से बाहर फिसल रहा है

ये ख़ाली-ख़ाली-सी हवा,

साँस लेता हूँ तो हक्क से फेफड़ों में लगती है

मैं सीने पर हाथ रखता हूँ,

कि दिल अपनी रफ़्तार से धड़क रहा है।

मेरी आँखों में एक पीलापन

जो बरसों से है

अब दिखने लग गया है।

कभी मेरे साथ कहकहा लगाती दीवारें

अब मेरी चुप्पी पर बिगड़ जाती हैं

पलस्तर चटक जाता है।

ज़रा-सा निकलता हूँ बाहर

तो एक अजीब-सी गंध भर जाती है

मेरे नथुनों में

मैं अपने कमरे के अलावा

अब कहीं साँस नहीं ले पाता हूँ।

मैं सोचता हूँ—

जिन स्त्रियों ने मुझे प्रेम किया

उनके लिए मैं कुछ कर सका।

मैं सोचता हूँ कि एक दिन उठकर सीधे

उनके पास चला जाऊँ और

उनकी नर्म हथेलियों पर गुदगुदा कर

लिख दूँ प्रेम।

शायद इससे ज़्यादा अब मेरे पास कुछ नहीं!

स्रोत :
  • रचनाकार : पंकज प्रखर
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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