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झुंड में रोती हुई स्त्रियाँ

jhunD mein roti hui striyan

विशाल श्रीवास्तव

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विशाल श्रीवास्तव

झुंड में रोती हुई स्त्रियाँ

विशाल श्रीवास्तव

और अधिकविशाल श्रीवास्तव

    वे रो रही हैं

    ताकि दुख उनकी स्मृतियों में

    थक्के की तरह जमने पाए

    उनके रोने से ही पिघलेगी

    शोक की सतह पर जमी मुश्किल बर्फ़

    पीड़ा को किसी अयस्क की तरह माँजतीं स्त्रियाँ

    अपने साझे दुख को किसी अपूर्व अनुभव की तरह रोती हैं

    वे जानती हैं

    यहीं नहीं रह जाएगा उनका विलाप

    वह हवा में किसी नक्षत्र की तरह तैरता फिरेगा

    और किसी पेड़ की अंतिम उदास पत्ती के सहारे

    माहौल में शामिल होगा धीरे-धीरे

    इस झुंड की उस स्त्री को पहचानना मुश्किल है

    जिसके दुख को उन्होंने

    अपने आसमान पर

    उदास चंद्रमा की तरह टाँग रखा है

    उन्हें अकेला छोड़ दो

    वे उस दुख के दूधिया प्रकाश में नहाना चाहती हैं।

    स्रोत :
    • पुस्तक : पीली रोशनी से भरा काग़ज़ (पृष्ठ 15)
    • रचनाकार : विशाल श्रीवास्तव
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2016

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