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जंगल

jangal

सरबजीत गरचा

अन्य

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और अधिकसरबजीत गरचा

    अब घने से घने जंगल से भी डर नहीं लगता

    बल्कि जंगल अब मुझे पुकारते हैं

    घनी बरसात की परतों के पीछे फैले जंगल

    जो दूसरी सदी से इस घर के सामने की

    सड़क के पार उतरे हुए लगते हैं

    वहाँ पेड़ों की पुरानी दोस्ती का

    गीत गाता एक पंछी

    किसी झुरमुट में दुबका

    भीग रहा होगा

    बार-बार ख़ुद से यही कहता कि

    झड़ी चाहे जितनी लंबी हो जाए

    उसका घरौंदा नहीं रौंदेगी

    और वह लौटेगा वहाँ

    अपना घर उसके लिए अपना नहीं है

    उसे नहीं पता है

    बारिश के पीछे का विज्ञान

    फिर भी कुछ बातों पर

    सहज ही कर लेता है विश्वास

    नहीं समझता है विनाश की शब्दावली

    और उसके पीछे का मनोविज्ञान

    जैसे कि बिजली गिरने से

    सिर्फ़ घरौंदा ही नहीं

    पूरा का पूरा पेड़ भी

    जाएगा फुँक

    या फिर पूरा का पूरा जंगल ही

    वह बस इतना ही जानता है

    कि बरसात थम जाने पर

    फिर देगी साथ उसका

    एक नई उड़ान

    मेरे घर के ऊपर से उड़ता हर पंछी

    मुझे उसी घने जंगल से

    आया जान पड़ता है

    इसलिए अब घने से घने

    जंगल से भी मुझे

    डर नहीं लगता

    स्रोत :
    • रचनाकार : सरबजीत गरचा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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