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जागे नयन किसी के, सारी रात

jage nayan kisi ke, sari raat

राजेंद्र यादव

अन्य

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राजेंद्र यादव

जागे नयन किसी के, सारी रात

राजेंद्र यादव

और अधिकराजेंद्र यादव

    आज दीपावली

    तिमिर के खेत में अंकुर प्रभा के फूटते हैं

    झुकी शाख़ों पर तमस की—

    ज्योति के कोंपल सुनहले थरथराते उठ रहे हैं।

    और सोया मन गगन का फुलझड़ी बन घूमता है!

    आज अंतस का रुँधा विक्षोभ

    लोहित लपट में यों विस्फुरित हो

    भस्म करने को हुआ कटि-बद्ध बाक़ी स्नेह-कण,

    —‘क्यो हमारा चाँद कोई ले गया।’

    चाँद, मुझको आह, तुमसे प्यार कितना।

    दिवा सपनों की नशीली रश्मियों के केंद्र मेरे!

    यह सिकुड़नें,

    यह लाल डोरे

    खिंची भोहों पर उभरती सलवटें

    सब साफ़ ही तो कह रहीं ये—

    नयन के सूने बिछौनों पर

    हृदय के दिव्य मर्मों में पली

    अवचेतना की गहन वीथी से—

    चली आई कुमारी स्वप्न की।

    पर रात भर बेचैन करवट ही बदलती वह रही है

    आज सारी रात मैं भी एक पल को सो पाया!

    स्रोत :
    • पुस्तक : आवाज़ तेरी है (पृष्ठ 34)
    • रचनाकार : राजेंद्र यादव
    • प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ
    • संस्करण : 1960

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