Font by Mehr Nastaliq Web

जब बुत बन जाता है

jab but ban jata hai

सुरजीत पातर

अन्य

अन्य

सुरजीत पातर

जब बुत बन जाता है

सुरजीत पातर

और अधिकसुरजीत पातर

    चरखड़ी प्याला ज़हर का

    हर बशर निर्दोष तेरे शहर का

    क्या कहूँ मगर अपने दिल की ज़हर से

    क्या करूँ दरद की इस लहर का

    जिसके आगे कुछ ठहरे

    तेरी साँसों की गिनती का यक़ीं

    तेरे थक जाने की बात

    और भी सोचों में मन डूबा जाता है

    जैसे तू मरा नहीं

    तुझे किसी ने मारा है

    चाहे किसी अहसास या विश्वास ने ही

    तुझे किसी ने मारा है

    कल इस शहर का शृंगार होकर

    बुत मर्मर का चौराहे पर खड़ा होकर

    शहर के बाशिंदों की

    कद्रदानी प्यार—

    का बनेगा इश्तिहार

    मुस्कराता जाएगा

    हर खिले चेहरे पे हर मायूस पे

    हर प्रदर्शन हर जुलूस पे

    अमावस पूर्णिमा पर

    लूलों अंधों पर

    हर एक दुर्घटना हर प्रीतिमिलन पर

    हर एक बदचलनी हर सच्चरित्र पर

    देखकर बिट-बिट

    बस मुस्कराएगा

    बुत को आँसू कभी

    बुत को गुस्सा कभी आएगा

    अब तो तेरे क़ातिलों को भी तेरे इस बुत पर

    बेइंतहा प्यार आएगा

    क्योंकि हर झाँकी पर बुत मुस्कराएगा

    बुत को आँसू कभी

    बुत को गुस्सा कभी आएगा।

    स्रोत :
    • पुस्तक : कभी नहीं सोचा था (पृष्ठ 75)
    • रचनाकार : सुरजीत पातर
    • प्रकाशन : सारांश प्रकाशन
    • संस्करण : 1998

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

    रजिस्टर कीजिए