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स्त्री

istri

परमानंद श्रीवास्तव

अन्य

अन्य

और अधिकपरमानंद श्रीवास्तव

    घने और असह्य अँधेरे में

    उस स्त्री ने

    बचा रखी थी

    ज़रा-सी चमक

    वह कहाँ थी

    और कहाँ से आती थी

    कहना कठिन था

    साँवला रंग

    साधारण भाषा और

    सब कुछ साधारण जो

    एक कामगार स्त्री के पास

    हो सकता है

    अपने चरम उजाड़ में

    उससे कुछ भी कह पाना कठिन था

    इतना असह्य अँधेरा था

    उसके पास

    भूकंप था हादसे थे

    और गृहयुद्ध भी

    जो बिल्कुल निजी क़िस्म के होते हैं

    क्या उजड़ना भी इसी को कहते हैं

    जो उसकी फीकी हँसी से प्रकट

    होता है कभी-कभी

    मैंने अपने से सवाल किया

    मुझे लगा यह इतनी फीकी हँसी भी

    दुनिया में आख़िर

    करती ही है अपना काम

    जब दुनिया छोड़ देती है

    जीने की उम्मीद

    जैसे कि मैं

    वह एक मुलायम हाथ से

    इशारा करती है

    ओर कह जाती है वह

    संक्षिप्ततम शब्द

    जिससे जीने की आँच आती है

    स्रोत :
    • पुस्तक : साक्षात्कार 104-106 (पृष्ठ 29)
    • संपादक : सोमदत्त
    • रचनाकार : परमानंद श्रीवास्तव

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