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सीमा के कँटीले तार

sima ke kantile taar

फरूग़ फरूख़ज़ाद

अन्य

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फरूग़ फरूख़ज़ाद

सीमा के कँटीले तार

फरूग़ फरूख़ज़ाद

और अधिकफरूग़ फरूख़ज़ाद

    एक बार फिर

    अब ख़ामोश इस रात

    सीमांत दीवारें

    गुँथ जाती हैं आपस में

    बैलों की तरह

    ताकि बहला सकें

    मेरे प्रेम को।

    एक बार फिर

    क़स्बे की भुतैली खुसर-पुसर

    मचलती मछलियों की तरह

    लाँघ जाती है

    मेरे अँधेरों की परिधि

    एक बार फिर अब

    खिड़कियाँ खोज लेती है

    अपने को

    बिखेरती गंध को

    पकड़ने की ललक में

    ऊँघते बाग़ीचों में दरख़्त

    झराते हैं अपनी खुरदुरी केंचुल

    और मिट्टी अपने

    असंख्य रंध्रों से

    सोख लेती है

    चाँद पर झिलमिलाते कण।

    अब

    पास जाओ

    और सुनो

    मेरे प्रेम की बेचैन धड़कनों को

    जो अफ़्रीक़ी ढोलक थापों सी

    फैल रही है

    मेरी नसों की जनजातियों में।

    मुझे लगता है

    मैं जानती हूँ

    कौन-सा क्षण

    प्रार्थना का है।

    अब तारे प्रेमी हैं

    रात के गर्भ में

    हल्के झोंकों से

    डोलती हूँ मैं।

    रात के गर्भ में

    पागल कुलाँचे भरती हूँ

    और अपने घनेरे केश

    तुम्हारी हथेलियों को सौंप

    बढ़ाती हूँ तुम्हारी ओर

    भूमध्य रेखा का

    यह नया ट्रॉपिकल फूल।

    मेरे संग आओ

    उस तारे तक,

    मेरे संग आओ वहाँ

    जो ज़मानी आकारों

    और अर्थहीन मापों से

    शताब्दियों दूर है—

    वहाँ कोई भी

    रोशनी से नहीं खाता ख़ौफ़

    पानी पर तिरते द्वीपों पर

    साँस लेती हूँ मैं।

    मेरी खोज है

    अनंत आकाश में

    अपने हिस्से की जो

    संभव है

    एक दुष्ट विचार

    की लहर के बीच

    का शून्य हो।

    मेरा संदर्भ लो, चलो

    सब कुछ के उस स्त्रोत के पास

    उत्पत्ति की उस अधिकृत धुरी के पास

    जिस क्षण रचा गया मुझे तुमसे

    चलो, उस क्षण के पास

    और देखो

    पूरी नहीं हूँ मैं

    तुमसे रची जाकर ही।

    अब मेरी

    छाती की चोटियों पर

    उड़ते कपोत

    अब

    मेरे होंठो के रेशम-खोल में बंद

    उड़ान की कल्पना

    में डूबते उतराते

    तितली के चुंबन

    अब

    मेरी देह का देवालय

    प्रेम की स्तुति को प्रस्तुत

    मेरा संदर्भ लो

    मैं स्वयं बोलने में अक्षम हूँ

    क्योंकि प्रेम करती हूँ तुम्हें

    क्योंकि मैं प्रेम करती हूँ तुम्हें

    है सिर्फ़ एक वाक्य

    रुढ़ जिसे पिटे

    अर्थहीन संसार का।

    मेरा संदर्भ लो

    मैं स्वयं बोलने में अक्षम हूँ।

    रात के गर्भ में

    प्यार करने दो मुझे चाँद से

    डबडबा आने दो मुझे नन्ही बारिश बूँदों से

    अनबने दिलों, अजन्में आयतनों से

    भर आने दो मुझे।

    हो सकता है।

    मेरा प्रेम

    थपकता बुला लाए

    इस संसार में—

    वह अगला मसीहा।

    स्रोत :
    • पुस्तक : दरवाज़े में कोई चाबी नहीं (पृष्ठ 264)
    • संपादक : वंशी माहेश्वरी
    • रचनाकार : फरूग़ फरूख़ज़ाद
    • प्रकाशन : संभावना प्रकाशन
    • संस्करण : 2020

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