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एक और जन्म

ek aur janm

फरूग़ फरूख़ज़ाद

अन्य

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फरूग़ फरूख़ज़ाद

एक और जन्म

फरूग़ फरूख़ज़ाद

और अधिकफरूग़ फरूख़ज़ाद

    मेरा समूचा अपना आप

    है एक घना गहरा जाप

    जो एक से अनेक

    बनाते हुए तुम्हें

    उठा ले जाएगा

    अनंत अंकुरण के सवेरे में

    इस जाप में

    तुमने भरी है आह

    मैंने भी

    इस जाप में

    तुम्हें क़लम कर दिया है मैंने

    पेड़, हवा और आग के साथ

    ज़िंदगी शायद

    एक लंबी गली है

    जिसमें से गुज़रती है हर रोज़

    एक स्त्री

    सर पर टोकरा उठाए

    ज़िंदगी शायद

    वह रस्सी है जिसे पहन

    झूल जाती है कोई देह

    किसी डाल से

    ज़िंदगी शायद

    स्कूल से घर

    लौटता एक बच्चा है

    ज़िंदगी शायद

    प्रेम के क्षणों

    के सघन अंतराल में

    एक सिगरेट का सुलगना है

    या एक अर्थहीन मुस्कान के साथ

    अपना टोप उठा, सलाम करते

    एक गुज़रते राहगीर की

    ख़ाली नज़र है।

    ज़िंदगी शायद

    वह छिपा हुआ क्षण है

    जब मेरा देखना

    तुम्हारी पुतलियों में

    नष्ट हो जाता है।

    और वह है

    उस अहसास में

    जो मैं चाँद के असर

    और रात की निस्तब्धता में

    अभी समेटूँगी।

    इस कमरे में

    जो अकेलेपन-सा

    फैला हुआ है,

    मेरा हृदय जो

    प्रेम-सा आसीन है

    देखता है

    अपनी ख़ुशी के

    सरल साधारण उपकरण

    गुलदान में सड़ते ख़ूबसूरत फूल,

    वह पौध जो तुमने रोपी थी

    हमारे बाग़ीचे में

    और बुलबुल का यह गीत

    जो वह खिड़की भर गाती है

    आह! यही है मेरा भाग

    मेरा भाग है

    एक आसमान

    जो परदा गिरते ही

    मुझसे छिन जाता है

    मेरा भाग उतरना

    उन सीढ़ियों से

    जो इस्तेमाल में नहीं है

    और पाना

    मृत और अतीत सुख स्मृति

    के बीच कुछ

    मेरा भाग

    एक उदास क्यारी का

    स्मृति के बाग़ीचों में

    उस स्वर की पीड़ा

    में घुलकर ख़त्म हो जाना

    जो कहती है मुझसे

    मुझे प्यारे हैं तुम्हारे हाथ

    यही हाथ रोप दूँगी मैं

    बाग़ीचे में

    उगूँगी फिर

    ये जानती हूँ

    जानती हूँ, जानती हूँ

    चील अंडें देगी

    मेरी स्याही सनी

    हथेलियों के कोटरों में

    चैरी की दो बेरियाँ

    पहनूँगी मैं, अपने कानों में

    और नाख़ूनों पर डेहरिया की पंखुरियाँ

    एक गली है

    जहाँ पतली गर्दनों

    और सींकिया टाँगों वाले

    वे लड़के जो प्रेम करते थे मुझे

    भटकते हैं अब भी बाल छितराए

    और सोचते हैं

    उस नन्ही-सी लड़की

    की निश्छल मुस्कान के बारे में

    जिसे हवा उड़ा ले गई एक रात

    मेरा मन चुरा लाया है

    एक गली

    मेरे रूप की यात्रा

    समय के गोलाकार में

    गुँथ जाती है

    रूप, बिंब को सोचते हुए

    लौटता है आईने की

    दावत से

    यूँ

    मर जाता है कोई

    और कोई

    जीता चला जाता है।

    कोई मछुआरा नहीं पाएगा मोती

    कुंड में गिरते-फुद्द से झरने में

    मैं एक उदास परी

    को जानती हूँ

    जो सागर में रहती है

    और हौले-हौले

    उँडेलती है अपना आप

    जादुई एक बंसी में

    एक नन्ही उदास परी

    जो मरती है

    हर रात

    एक चुंबन से

    और जन्म लेती है

    एक चुंबन से

    हर अगली सुबह।

    स्रोत :
    • पुस्तक : दरवाज़े में कोई चाबी नहीं (पृष्ठ 255)
    • संपादक : वंशी माहेश्वरी
    • रचनाकार : फरूग़ फरूख़ज़ाद
    • प्रकाशन : संभावना प्रकाशन
    • संस्करण : 2020

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