जो लड़का बन गया हिरन रहस्यद्वार पर रोता है
jo laDka ban gaya hiran rahasyadvar par rota hai
फेरेन्त्स यूहाश
Ferenc Juhasz

जो लड़का बन गया हिरन रहस्यद्वार पर रोता है
jo laDka ban gaya hiran rahasyadvar par rota hai
Ferenc Juhasz
फेरेन्त्स यूहाश
और अधिकफेरेन्त्स यूहाश
अपने बेटे को माँ ने पुकारा बड़ी दूर से
अपने बेटे को माँ ने पुकारा बड़ी दूर से
दूर से पुकारती द्वार तक चली आई
जूड़े को खोल दिया
जूड़े के खुलते ही झर-झर कर गोधूली गहराई
एड़ी तक लटकी घनी घेरदार मख़मल की ओढ़नी
आँधी में दस काले फुँदनों से सजी ध्वजा-सी फहरी
रक्तरँगी लपटसनी चादर बन गई वही गोधूली
अँगुलियों पर लपेट नखतों की रश्मियाँ
चाँदना मुँह पर ढँक
चिल्लाकर हाँक दी बेटे को
जो उसके बचपन में देती थी
द्वारे आ खड़ी हुई हवाओं से बात की
कुहुक रही चिड़ियों से बोली
चटपट ख़बर जोड़े से लगी मस्त बतख़ों को भेज दी
काँपते नरकुलों,
खेतों में आलू के चाँदी के फूलों को
पाँव जमा खड़े डिंब लटकाए वृषभों को
छतनारे भीनी सुगंध भरे सुमैक झाड़ों को;
खेलती मछलियों से
पानी पर भागते स्निग्ध बैंजनी वृत्तों से कहा :
पक्षियो, शाखाओ तुम सुनो, सुनते हो
सुनो तुम, दुहाई है
और तुम मछलियो, फूलो तुम भी सुनो
तुम्हीं को सुनाती है
सुनो तुम धरती में पसरती हुई ग्रंथियो
थिरकते पंखो तुम, नखत छिटकाती उल्काओ तुम थमो
थम जाओ सत्वों को अणुओं के गर्भों में हुँहुआती मथानियो
सुसुआती टोंटियो कस जाओ
लौह-कोखवाली सब क्वाँरियो, ऊन-लदी भेड़ो तुम भी सुनो
मैंने अपने पूत को पुकारा है
बेटे को माँ ने गुहारा तो
सुर उसका ऊर्ध्व में कुंडली मारता उठ गया
और व्योममंडल में छा गया
ज्योति में झिलमिल वह खड़ी रही
मछली की पीठ-सी नमक की चट्टान-सी
बेटे को माँ ने आवाज़ दी
लौट आ मेरे लाल लौट आ
तेरी अम्मा ने बुलाया है
लौट आ मेरे लाल लौट आ
मेरी गरम गोद में लौट आ
लौट आ मेरे अपने सपूत लौट आ
मैं बुला रही हूँ तेरी शीतल नदी
लौट आ मेरे लाल लौट आ
माँ का दूध तुझको बुलाता है
लौट आ मेरे लाल लौट आ
मैं बुला रही हूँ, तेरी यह ढही हुई झोंपड़ी
लौट आ मेरे लाल लौट आ
मैं बुला रही हूँ टिमटिमाती हुई तेरी लौ
लौट आ मेरे अपने बच्चे क्योंकि
मैं चुभती हुई चीज़ों की दुनिया में अंधी हो गई हूँ
आँखें धँसी जाती हैं पियराए कुम्हलाए गड़हों में
सिकुड़ी जाती हैं कनपटियाँ, जाँघें, पपड़ियाई पिंडलियाँ,
चारों दिशाओं से वस्तुएँ उधियाए मेढ़ों-सी मुझ पर झपटती हैं
चौखटें, खंभे और कुरसियाँ सींग मारने को हैं
दरवाज़े आगे भिड़ जाते हैं झूमते शराबी-से
बिगड़ैल बिजली की धार मार करती है
चमड़ी उकिलती है खुनियाई जाती है
चिड़िया की चोंच ज्यों चटख़ी हो पत्थर से
धातु की मकड़ियों की तरह क़ैचियाँ सरककर पकड़ से परे चली जाती हैं
माचिस की तीलियाँ बन जाती हैं गौरैया के पंजे
बालटी दस्ते पर झूलकर मुँह पर चढ़ आती है
लौट आ मेरे लाल लौट आ
पाँव मुझे अब चंचल हिरनी-सा ढो नहीं पाते हैं
पैरों पर बड़े-बड़े अर्बुद थूथन काढ़े उग रहे
जाँघों में नील-पड़े गुम्मड़ गँठीले गोश्त के तले धँस गए
पंजों पर हाड़ की खूँटियाँ निकल आईं
हाथ की उँगलियाँ जोड़ों पर जकड़ गईं पोरों में ठट्टे पड़ गए हैं
मौसम की मार से जैसे चट्टानें पपड़ियाई हों
हर अंग अपना जीवन जीकर माँदा हो गया है
लौट आ मेरे अपने बेटे लौट आ
क्योंकि मैं अब पहले जैसी नहीं रह गई
अंतर अंदेशों से जर्जर हुआ है जो बूढ़े शरीर से भड़क-भड़क उठते हैं
जैसे ठिठुरती हुई भोर में जमी कड़ी कमीज़ों की बाड़ के भीतर से
उठती है बाँग वृद्ध मुर्ग़े की।
मैं तुझे बुलाती हूँ मैं तेरी महतारी
लौट आ मेरे पूत लौट आ
हद से गुज़री हुई ग़लतियाँ नए इंतज़ाम से सुधार दे
बिगड़ी बातें बना, चाक़ू को वश में कर, कंधे को पालतू
मैं तुझे बुलाती हूँ तेरी माँ
क्योंकि मैं अब महज़
किरकिराती हरी आँखों का जोड़ा हूँ भारहीन चमकीले लिबेलुला की तरह
जो अपनी पंखदार गुद्दी और
ड्रैगन-से जबड़ों के बूते पर,
यह तुम्हें पता है, बेटे, दो झिलमिल गोले
कपाल में अटकाए रहता है।
मैं महज़ घूरती आँखें हूँ जिनका चेहरा नहीं
जो कि प्रेतात्माओं के साथ अवलोकती सबकुछ हैं
लौट आ मेरे पूत लौट आ
ताज़े निश्वास से सबकुछ सुधार दे
दूर के जंगल में लड़के ने जब सुना
सर झटका नथुने चौड़े किए
हवा की गंध ली, गलस्तन फड़क उठे
खड़े हुए कान नखों से भरे, चौकन्ना हो गया
माँ के सिसकने की टोह में,
जैसे शिकारी की धूर्त सुगबुगाहट के सुनने में होते हैं
या कि बड़े वृक्षों की धधक उठी आग की नीली धुआँती लपटों तले
उठती उसाँस की आहट को सुनने में
सुनकर सर मोड़ लिया, आवाज़ जानी-पहचानी थी।
अब उसे यंत्रणा सताती है
क्योंकि उसे पुट्ठों पर बाल दीख जाते हैं
छरहरी टाँगों पर चिरे हुए खुर का अजीब चिह्न दिखता है
वन के पोखर में जहाँ पुरइन खिली है, उसे
लटके हुए लोमश डिंबकोश दीख जाते हैं
दौड़कर झील के किनारे पहुँचता है
मारता टक्करें झुरमुट सरो के उजाड़ता
भीगते लेस से नितंब, हर छलाँग पर सफ़ेद फेन उष्ण भूमि पर टपकाता हुआ
चारों काले खुरों से रस्ता चीरता जंगली फूलों के बीच से
गिरगिट को मिट्टी में मींजकर, कटी पूँछ फूली गरदन सहित
पड़े-पड़े ठंडा हो जाने को छोड़ता।
और जब झील पर पहुँचा तो चाँदनी-ढकी सतह में झाँका
देखा कि चाँद है, बीचफल लटके हैं
पीछे से एक हिरन ताक रहा।
अब कहीं दिखता है घने-घने बाल हैं
छरहरी देह पर उग आए
घुटनों पर, जाँघों पर, आड़े अंडकोषों पर,
लंबे कपाल पर सींग उग आए हैं
हड्डी की शाखों में फूट पड़ी हड्डियाँ
ठुड्डी तक श्मश्रु से ढँक गया थोबड़ा
नथुने दो फाँक और तिरछे हो गए हैं
वृक्षों से टकरा रहे हैं विशाल सींग
गरदन में पड़ गई नसभरी गुत्थियाँ
छटपटा-छटपटा अगली टाँगें उठा डोलता
उत्तर में चीख़कर बोलना चाहता पर माँ के बेटे के इस नए कंठ में
हिरन की बोली गूँ-गूँ कर रह जाती है
बेटे के एक बूँद आँसू टपकता है
वह तट की मिट्टी को बार-बार खूँदता
कि पानी का राक्षस विलुप्त हो, भँवर उसे लील ले अँधेरे में,
चंचल मछलियाँ जहाँ लाल पंख फरकातीं हीरों के बुज्जों-सी तिरती हैं;
अंत में तरंगें अँधेरे में खो गईं
किंतु चाँदनी में खड़ा हिरन रह जाता है
अब लड़का उत्तर देता है पुकारकर
भीतर से बजती हुई गरदन को तानकर
अब लड़का उत्तर देता है पुकारकर
हिरन के कंठ से कुहरे के आर-पार
अम्मा अरी अम्मा मैं फिर नहीं रुकता हूँ
तू मुझे मत बुला
अम्मा मेरी अम्मा
मेरी प्यारी दाई
अम्मा मेरी अम्मा
मेरी रस की धारा
राखनहारी बाँहें
दूधभरी छातियाँ
मेरे सर की छैयाँ
पाले से मेरी ओट
अम्मा मेरी अम्मा
मेरे आने की इच्छा न कर
अम्मा मेरी अम्मा
मेरी रेशमी छड़ी
अम्मा मेरी अम्मा
सोने के दाँत-जड़ी चिड़िया तू
अम्मा मेरी अम्मा
तू मुझे मत बुला
जो मैं लौटा तो सींग मेरे तुझे सालेंगे
सींगों ही सींगों उछालकर
मैं तुझे छलनी कर डालूँगा
जो मैं घर आ गया
तुझे उठा पटकूँगा
नसोंभरी छातियाँ ढीली-ढीली तेरी
खुरों से कुचल दूँगा
नोकीले सींगों से छेदकर
दाँत से भभोडूँगा
कोख भी तेरी खूँद डालूँगा
जो मैं घर लौटा तो
अम्मा मेरी अम्मा
फुप्फुस को काढ़कर
नीली मँडराती हुई मक्खियों के आगे रख दूँगा
तारे घूरते होंगे तेरे कुसुमांगों को
जो मुझे धारे थे
कभी अनंत ऊष्मा से भरे वसंत में
जैसे कभी यीशु को गायों की साँसे सेंक देती थीं।
अम्मा मेरी अम्मा
तू मुझे मत गुहार
मृत्यु तुझे खा लेगी आ मेरे रूप में
जो तेरा बेटा सामने पडा
सींगों की मेरी हर शाखा एक सोने का तंतु है
सींगों की नोकें तो उड़ती शम्माएँ हैं
सींगों की हर खूँटी अर्थी पर सजी मोमबत्ती है
सींगों की हर पत्ती सोने की वेदी है।
ख़त्म हो जाओगी
जो मेरे इन धूसर सींगों को आत्मा की मुक्ति के
प्रार्थना-दिवस पर तुम
रोशन क़ब्रगाह-सा उड़ता हुआ देखोगी
मेरा सर पत्थर के वृक्ष-सा लपटों के पत्तों से ढँका हुआ।
अम्मा मेरी अम्मा
जो मैं तेरे क़रीब आया तू पल में फूस-सी बरेगी
राख हो जाएगी चिकनी कलोंछ-भरी ख़ाक-सी
लुकाठी-सी घधकेगी क्योंकि मैं भूनकर धज्जियाँ
माँस की रख दूँगा।
अम्मा मेरी अम्मा
मुझे मत बुला
क्योंकि मैं घर आया
तो तुम्हें खा लूँगा
क्योंकि मैं घर आया
तो तेरी क्यारी उजाड़ूँगा
फुलवारी को हज़ार सींगों से
तहस-नहस कर दूँगा
रौंदे हुए उपवन के तरु चबा डालूँगा
घर का अकेला कुआँ एक घूँट में सुखा दूँगा मैं।
जो मैं तुम्हारी कुटी में लौटा
उसे भस्म कर दूँगा
और फिर दौड़कर पुरानी क़ब्रगाह में
कोमल लंबोतरे नथुनों से सूँघकर
चारों खुरों से खोदकर अपने बाप की मिट्टी निकालूँगा
दाँत से उकेलकर चिटखे ताबूत को
कंकाल को सूँघ-सूँघकर रख दूँगा।
अम्मा मेरी अम्मा
मुझे मत बुला
मैं फिर नहीं सकता
क्योंकि मैं घर आया
तो मेरी मौत में ज़रूर ले आऊँगा।
हिरन के सुर में आवाज़ दी बेटे ने
और इन शब्दों में माँ ने उत्तर दिया—
लौट आ मेरे सगे पूत तू लौट आ
मैं बुला रही हूँ तेरी माँ
लौट आ बेटे तू लौट आ
सोंधा शोरबा मैं पका दूँगी तू उसमें प्याज़ के लच्छे क़तर लेना
तू उन्हें दाँतों से कचरेगा राक्षस के जबड़ों में जैसे क्वार्ज़ की किरचें
धुले हुए रंगीन प्याले में गरम दूध परसूँगी
आख़िरी पीपे को ख़र्च कर दूँगी सुरा सारस की गरदन-सी सुराही में ढाल कर
कड़ी-कड़ी मुट्ठी से गूँथूँगी आटे को तेरी मनपसंद नान के लिए
मोटे-मोटे पुए पोऊँगी तेरे लिए शीरमाल दावत के वास्ते
लौट आ मेरे अपने बेटे लौट आ
तेरी तोशक के लिए बतख़ों के सीने से मैंने पर नोचे, वे ज़ोरों से चीख़ीं
रो-रोकर नंगा किया बतख़ों को मैंने खाल पर चिट्टी धारियाँ उभर आईं
जैसे मरते-मरते कोई मुँह बाये हो
तेरे बिछावन को धुली धूप दिखला दी ताज़ा कर दिया है
आँगन बुहार दिया आसन बिछा दिया है तेरी आस में।
ओ मेरी अम्मा मेरी अम्मा
मेरा घर लौटना तो होने का नहीं
मेरे लिए गेहूँ की रोटी परसकर मत रख
मेरे लिए गद्दे मुलायम तू मत बिछा
बतख़ों को नोच मत पंखों के वास्ते
अपनी सुराही को ढुलका दे बाप की क़ब्र पर वहीं सोख जाने दे
मीठे प्याज़ों को गूँथकर माला टाँग दे
गीले आटे की नोनवरिया पका डाल बच्चों के वास्ते
गरम दूध मेरे ओंठ लगते ही सिरका बन जाएगा
बड़ा पाव पत्थर का कछुआ बन जाएगा
तेरी वह सुरा पड़ी मेरे गिलास में ख़ून-सी उफनेगी
तोशक पड़े-पड़े दहक भस्म हो जाएगी
चूर-चूर चोंचदार प्याला हो जाएगा
मेरी माँ मेरी माँ मेरी अपनी प्यारी-प्यारी माँ,
क़दम नहीं रखूँगा बाप के घर में मैं
जंगल में दूर हरी झाड़ी में पड़ा कहीं रह लूँगा
अरझे हुए सींगों के वास्ते छाँहभरे घर में जगह नहीं
हाते में क़ब्र के वास्ते मेरी जगह नहीं
क्योंकि सींग हरियाले फैलकर विश्व-वृक्ष बन गए
पत्तियों की जगह नक्षत्रों ने ले ली हरी-हरी काई की आकाशगंगा ने
बूटियाँ सुगंधित मैं मुँह में रखता तो हूँ
किंतु मृदुल पल्लव ही जीभ पर घुलते हैं
पीता हूँ अब मैं तुम्हारे दिए फूलदार प्याले से नहीं
बल्कि निर्मल झरने से ही, निर्मल झरने से ही।
मैं नहीं बूझती, मैं नहीं बूझती तेरे व्याकुल विचित्र शब्दों को बेटे
हिरन-सा बोलता हिरन की आत्मा तुझमें समाई है मेरे अभागे पूत
फ़ाख़्ता की बोली फ़ाख़्ता की बोली गौरैया की बोली गौरैया की
बोली है मेरे बेटे,
मैं भला किस कारण जीवित हूँ—अखिल विश्व में एकाकी क्यों बची
क्या तुझे याद है क्या तुझे याद है छोटी-सी नौजवान औरत
जो तेरी माँ थी मेरे बेटे
मैं नहीं बूझती मैं नहीं बूझती तेरे व्याकुल विचित्र
शब्दों को मेरे बिसरे बेटे
क्या तुझे याद है कैसे तू दौड़ता हँसता घर आता था
अपनी इस्कूल की रपट दिखलाने को
चीरा था तूने बड़ा मेंढक लटकाए थे बाड़ पर जिसके झिल्ली-मढ़े चितकबरे पंजे
कैसे तू मग्न था हवाई जहाज़ की किताबों में कैसे धुलाई के काम में
हिस्सा बँटाने को पीछे लगा रहता था
तुझे आइरीन वी. प्यारी थी तेरे दोस्त वी.जे. थे
और एक एच.एस. थे वह लाल दाढ़ीदार चित्रकार
क्या तुझे याद है सनीचर की शामों को जब तेरे बाप नशा किए बिना आते तो
तू कितना ख़ुश होता
ओ अम्मा ओ अम्मा मेरी पुरानी किसी प्रेमिका किसी मित्र
का और कोई मत नाम ले
मछली-से वे ठंडे पानी में ग़ायब हो जाते हैं
सिंदूरी दाढ़ीवाला वह चित्रकार अब
किसको पता है कहाँ गया हल्ला मचाते हुए अपने ही ढंग से ओ अम्मा
किसे पता मेरा यौवन कहाँ रह गया
अम्मा मेरी अम्मा याद पिता की न कर उनके शरीर से शोक फूट आया है
दु:ख काली मिट्टी में फूलता, बापू को मेरे मत याद कर
क़ब्र से उठेंगे वह अपनी पियराई हुई हड्डियाँ समेटकर
उठकर लड़खड़ाएँगे, बाल और नाख़ून फिर से बढ़ आएँगे
अरे-अरे विलियम चच्चा आए ताबूतसाज़ हैं कठपुतलीनुमा शक्ल;
उनने हमसे कहा कि पाँवों से उठाकर ताबूत में तुम्हें रखें
मैं हिचक गया था डर लगता था पेश्त से सीधे उसी दिन घर आया था
तुम भी मेरे पिता पेश्त को आते और जाते थे तुम दफर के महज़ एक
हरकारे थे, रेलें उखड़ी पड़ीं,
ओह, दर्द की मरोड़ देह में भर गई थी, दिये की रोशनी में दिखीं कसे हुए जबड़े पर
तुम्हारी झुर्रियाँ।
लाची हज्जाम था, तुम्हारा नया दामाद उसने हजामत तुम्हारी बनाई थी
ग़लती मोमबत्ती मौन शिशु-सी दुलकती रही सब समय
चमकीली अंतड़ियाँ निकालकर उगलती रही, लंबी चिकनी स्नायु-जैसी वृत-वल्लरी
भजनीक घेरकर खड़े तुम्हें बैंजनी टोप धरे टीप के सुरों में शोकगीत गा रहे थे
उँगली से मैंने छुआ माथा तुम्हारे बाल ज़िंदा थे
उनके बढ़ने की आवाज़ सुनी मैंने दिखा ठोड़ी पर खूँटियाँ उग करके
दिन में काली पड़ी अगले दिन टेंटुआ लहराते बालों के नीचे धसक गया
जैसे मुलायम रोओं-ढँकी फूट हो, हरे करमकल्ले-सी खाल पर जैसे नीली इल्ली
ओह, मुझे तब लगा कि दाढ़ी के तुम्हारे बाल पूरे कमरे को अहाते को भर देंगे
पूरे संसार को, सितारे जटाओं में धरकर छिप जाएँगे।
आह, घना हरा मेह तब गिरने लग गया अर्थी के आगे लाल घोड़े हिनहिनाए
आतंक से
एक ने अचानक चमककर उठा लिए सर पर तुम्हारे खुर दूसरा लगातार
मूतने लग गया
जिससे कि बैंजनी शिश्न सिकुड़कर हुआ फाँसी पर लटके मनुष्य की ज़ुबान सा
कोचवान गाली बकने लगा
मुसलाधार ने जमा बैंडवाले नहला दिए तब सब पुराने मित्र कसकर बजा चले
सिसकते जाते थे बजाते जाते थे गिरजे की गोल भटकटैया से छाई दीवार के सामने
खड़े हुए
दोस्त वे पुराने बजाते रहे ओंठ सूजकर नीले पड़ गए।
मँडराकर धुन फैली और उठती गई।
साथी पुराने बजाते थे ओंठ फटे और खुनिया गए, दीदे उभर आए
ताश की बाज़ी की याद में साथ-साथ पीने की याद में बजाते थे
फूलकर मुटाई हुई, सूखी हुई, सजी-धजी औरतों की उनकी याद में बजाते थे
उन्होंने तुम्हारी विजय के दिन ख़ुशियाँ मनाने के नाम पर बजाया और बख़्शीश
बाँटी बजाकर तुम्हारे नाम
उन्होंने बजाया सिसकियाँ भर बजाया और शोक की जमी हुई परतों को
भीतर तक मथ दिया।
संगीत जलते हुए ओंठों से निकला और पीतल की नलियों से होकर
उस लय से निकली दुर्गंधभरे शून्य में बह गया,
गुमसुम प्रेमिकाएँ और सड़ती जनानियाँ, पितामह फफूँद लगे भभके में निकले
और साथ में खपरैलें, बच्चों के पालने उखड़ी और सीली इनामेल की चाँदी की
घड़ियों की
पीढ़ी लुढ़कती हुई प्याज़ की आँडियों जैसी चली आई।
ईस्टर-घंटियाँ क़िस्म-क़िस्म के तोहफ़े भी चले आए
आवाज़ के फैले हुए डैनों पर
जिसने बुलाए लीं बोरियाँ, रेल के पहिए, सलामी देते हुए पीतल
के बटन-लगी वर्दीवाले सैनिक
साथी बजाते रहे काले कलेजी से सूजे हुए ओंठों को भींचकर
कि दाँत लाल पड़ गए
तुम ख़ुद संगीत का संचालन करते थे, वाह-वाह, शाबाश, बहुत अच्छे
जमे रहो थमो नहीं
सब समय कसकर के बँधे हुए हाथ थे, बड़ी-बड़ी गाँठदार जोड़ोंदार टाँगों की
सुनहरी मकड़ियाँ थीं सीने पर तुम्हारे धरी हुईं
ताखे में लपेटे हुए जूते तुम्हारे इंतज़ार रिश्तेदारों का करते हैं
अनढँकी उजली जुर्राबें, झुराते हुए पैरों पर रहती हैं
साथी पुराने जो मूसलाधार में उस दिन बजाते थे बाजे के परदे
इस्पात के टेंटुए जैसे दबाते हुए
आदिम विहंगों के दाँतों से जैसे उन पीतल के बाजों के
अंदर से माँस काढ़ लेने को करते हों।
अम्मा मेरी अम्मा मेरे पिता को मत याद कर
मेरे पिता को तू रहने दे, कहीं फटी धरती से उनकी आँख
न फूटकर निकलें
बेटे को माँ ने पुकारा बड़ी दूर से—
लौट आ मेरे लाल लौट आ
पत्थर की दुनिया को छोड़कर आ जा
पत्थर के वनों के हिरन, कारख़ानों की हवा और बिजली के खंभों के जाल
रासायनिक चौंध, पुल लोहे के और बसें, ट्रामें ख़ून तेरा चाट लेते हैं
दिन-प्रतिदिन तुझ पर सौ आक्रमण होते हैं
पलटकर तू कभी वार नहीं करता है
मैं तुझे आवाज़ देती हूँ तेरी अपनी अम्मा
लौट आ मेरे पूत लौट आ।
वह खड़ा था कगार काल के बदलते जा रहे थे भव्य
ब्रह्माण्ड के चक्रशिखर पर खड़ा
लड़का रहस्यों के द्वार पर
नक्षत्रों से उसके सींग थे खेलते
हिरना के स्वर में संसार के बिसरे हुए रास्तों से होकर
वह जीवनदायिनी माँ को संदेशा पहुँचाता है
अम्मा मेरी अम्मा मैं नहीं फिर सकता
मेरे सौ घावों में खरा स्वर्ण चुरता है
दिन-प्रतिदिन गोलियाँ सौ-सौ टकराती हैं पैरों से
दिन-प्रतिदिन फिर से उठता हूँ मैं सौ गुना पूर्ण हो
दिन-प्रतिदिन तीस खरब बार मैं मरता हूँ
दिन-प्रतिदिन तीस खरब बार मैं जन्मता हूँ
मेरे सींगों की हर शाखा में दुहरा तोरण है
हर खूँटी प्रबल शक्ति बिजली का तार है
आँखें समुद्री व्यापारियों के बंदरगाह हैं
धमनियाँ केबल हैं
दाँत हैं लोहे के पुल, हृदय राक्षसों से भरा सागर है
एक-एक कशेरू है भीड़ भरा महानगर
प्लीहा की जगह धुआँ छोड़ती नौका है
मेरी हर कोशिका एक कारखाख़ा है।
मेरे अणु-अणु में है सौर-जगत
चंद्र-सूर्य मेरे डिंबकोशों में झूलते
मज्जा में मेरी व्योमगंगा है
अंतरिक्ष का हर कण मेरी ही देह है
मस्तिष्क की तरंग नक्षत्रों का स्पंदन।
मेरे गुम हुए पूत अब जो हो तू लौट आ
तेरी लिबेलुला नयन माँ तेरी बाट जोहती
मैं केवल मरने के वास्ते लौटूँगा
मरने के ख़ातिर ही लौटूँगा केवल मरने के लिए लौटूँगा
हाँ मैं लौटूँगा बस मरने को लौटूँगा
और जब आऊँगा मरने को मेरी माँ
तब मुझे पुरखों के घर में लिटा देना
अपने संगमरमरी हाथों से नहलाना
सूजी हुई आँखों को चूमकर मूँदना
और जब देह गल-गलकर बिखर जाए
अपनी दुर्गंध से भरी हुई पड़ी रहे
ढँकी रहे फिर भी घने फूलों से
तब तेरे रक्त से मुझको पोषण मिले
मैं तेरी देह का फल बनूँ
तब मैं तेरा मुनुआ फिर से बन जाऊँगा
और यह सिर्फ़ तुझे सालेगा मेरी माँ,
सिर्फ़ तुझे मेरी माँ।
- पुस्तक : पुनर्वसु (पृष्ठ 237)
- संपादक : अशोक वाजपेयी
- रचनाकार : फेरेन्त्स यूहाश
- प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली
- संस्करण : 1989
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