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हम

hum

अनुवाद : दिनकर सोनवलकर

शरच्चंद्र मुक्तिबोध

अन्य

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और अधिकशरच्चंद्र मुक्तिबोध

    हम सब लक्ष्यहीन, श्रद्धाविहीन, टूटे हुए,

    मनचाहे सपनों को ओढ़कर फिरते हैं।

    हम लक्ष्यहीन, श्रद्धाविहीन, विशृंखल

    हम सब हैं वृत्त

    अपने ही अहं को केंद्र मान

    घूम रहे गोल-गोल;

    नीली बैंगनी विषैली किरणें

    विकेंद्रित करती हैं।

    एक-दूसरे को बेधते जो

    ऐसे हम वृत्त हैं

    अंतर में ज्योति थी

    किंतु वह क्षीण हुई;

    अब तो महज़ राख है

    जिस पर ख़ुद का व्यक्तित्व पसार कर

    निर्वाण का अजगर

    घोर निराशा की आँखें खोले,

    गेंडुली मारे पड़ा है।

    हम एक-दूसरे को

    क्रोधित दृष्टि से देखते हैं

    (स्वतः के प्रति हीन भाव से पीड़ित)

    होठों पर विकृतियाँ फैलती हैं,

    (जैसे सृष्टि हो अर्थहीन)

    मृत्यु की काली लपटों से

    हमारा चहरा क्षण-क्षण

    झुलसता जाता है।

    जो भी देखे, काँप उठे

    जैसे उघड़े तन पर चाबुक की मार पड़े।

    हड्डियों में भिदा हुआ

    आत्मघातक बुख़ार

    नीली शत-शत जिह्वाओं से

    धमनियों का सृजनशील लाल रक्त

    सोख रहा,

    और उसी यातना से दबे

    हम सब देखते हैं

    शून्यवत्, निर्विकार।

    हमारे आसपास गुज़रने वाले

    सफ़ेद क़दम

    यह नहीं पाप विमोचन?

    यह तो है ख़ालिस आत्म-हनन।

    अपने जलते हुए तलुए

    मिट्टी की अँधेरी परतों की

    ऊर्जा पर सख़्ती से रखो,

    आओ हम सब दौड़ें;

    झरनों के ठंडे पानी से

    पैरों को राहत दें;

    और पहचानें यह रहस्य

    कि कैसे काली मिट्टी के पिंड को फोड़कर

    हरियाली ज़िंदगी उभरती है?

    ज्वर को शांत होने दो :

    आँखों के अंगारे बुझने दो;

    उछलने, उबस पड़ने वाले मन को

    अ-चंचल बनने दो;

    और मिट्टी की चेतना की उर्मियाँ

    अंग-अंग में से लहराने दो,

    तभी पहचानोगे माटी का जादू—

    जब झुकोगे माटी के चरणों पर

    शीश धरे

    मिट्टी से निकलोगे

    तभी, हाँ तभी हँस सकोगे।

    लहलहाती फ़सलों वाले खेत में

    हरे रंग के हाथ हिलाने वाले

    करोड़ों पौधे;

    जो जोश-भरे, गतिवान, ऊपर-ऊपर

    सूर्य तक जाते हैं;

    वैसी ही तरुणाई जागेगी तुममें।

    मिट्टी के कारण ही

    मानवता मृत्युंजय

    मिट्टी में छिपी हुई

    सृजनात्मक गति अक्षय।

    स्रोत :
    • पुस्तक : प्रतिनिधि संकलन कविता मराठी (पृष्ठ 214)
    • रचनाकार : शरच्चंद्र मुक्तिबोध
    • प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन
    • संस्करण : 1965

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