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‘हृदय पगडंडियाँ’

‘hriday pagDanDiyan’

बबली गुज्जर

अन्य

अन्य

बबली गुज्जर

‘हृदय पगडंडियाँ’

बबली गुज्जर

मुझे परिंदों के उड़ने का

शग़ल नहीं जानना था

ही जाननी थी कभी

समंदर की ठीक ठीक गहराई

मुझे फूलों के महकने का

सहूर नहीं पूछना था

सूरज की तपन ही

पृथ्वी की गोलाई

मैं तो बस

भरे पूरे घर में अकेले रह गए

आदमी का दुख जानना चाहती थी

मैं तुम्हारी दाईं हथेली पर

उभर आई एक सख़्त डील का

आयतन भर मापना चाहती थी

जानना चाहती थी

कि क्यूँ सबसे क़ीमती

और सबसे ज़रूरी आदमी को

इंसान चाहकर भी खो देता है

क्यूँ आदमज़ात का एक मज़बूत इंसान

एक कोमल स्त्री के आलिंगन में

भरभरा कर रो देता है...

मैं कोई उम्दा कलाकर होती

तो तुम्हारे रोम-रोम के नाम

लिख देती अनेकों कविताएँ

समर्पित करती उन्हें बेहक

प्रेम बिरादरी के नाम

जिसे जो भाए, ले जाएँ

बरसों से एक अंधा कुम्हार

सने हाथ बैठा है चाक किनारे

जाने किसकी मूरत गढ़ेगा

मेरे समंदर

मेरा लहर भर प्रेम

तुम्हारे शरीर के मानचित्रों को

पढ़-पढ़ कर नहीं,

तुम्हारी हृदय पगडंडियों से

भटक-भटक तुम तक पहुँचेगा...

स्रोत :
  • रचनाकार : बबली गुज्जर
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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