प्रभु से खेली क्यों होली...

prabhu se kheli kyon holi. . .

ज्ञानराज माणिकप्रभु

ज्ञानराज माणिकप्रभु

प्रभु से खेली क्यों होली...

ज्ञानराज माणिकप्रभु

सखि, साड़ी आज भिगो ली।

भीगी अँगिया औ' चोली।

मैं निपट निगोड़ी भोली,

प्रभु से खेली क्यों होली॥

वह चोर जार गिरधारी।

भर ले आया पिचकारी।

हँस-हँसकर भर किलकारी।

रंग दी उसने ये साड़ी।

उस अजब-ग़ज़ब हमजोली से क्योंकर खेली होली॥

सखि, रोक डगर पनघट की।

उसने फोड़ी यह मटकी।

औं' तोड़ लाज घूँघट की।

मेरी यह चुनरी झटकी।

मैं उसकी आँखमिचौली से तंग हुई औ' रो ली॥

उसने ही मुझको पकड़ा।

बाँहों में लेकर जकड़ा।

वह छैल-छबीला तगड़ा।

मैं कर सकी सखि, झगड़ा।

सखि, पकड़ मरोड़ हथेली की उसने ढीठ-ठिठोली॥

सखि मैं अज्ञानी नारी।

अनपढ़ जडमति अविचारी।

कर बातें प्यारी-प्यारी।

वह जीता औ' में हारी।

हो गई अजब अठखेली—मैं आज उसी की हो ली॥

स्रोत :
  • रचनाकार : ज्ञानराज माणिकप्रभु
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

संबंधित विषय

हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

Additional information available

Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

OKAY

About this sher

Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

Close

rare Unpublished content

This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

OKAY