होली पर कविताएँ

रंग-उमंग का पर्व होली

कविताओं में व्यापक उपस्थिति रखता रहा है। होली में व्याप्त लोक-संस्कृति और सरलता-सरसता का लोक-भाषा की दहलीज़ से आगे बढ़ते हुए एक मानक भाषा में उसी उत्स से दर्ज हो जाना बेहद नैसर्गिक ही है। इस चयन में होली और होली के विविध रंगों और उनसे जुड़े जीवन-प्रसंगों को बुनती कविताओं का संकलन किया गया है।

फागुन का गीत

अजित पुष्कल

फागुनी हवाएँ

अखिलेश सिंह

मछलीघर

हेमंत देवलेकर

गले मिलते रंग

विनोद दास

होली

मधुर अथैया

जल रहा है

केदारनाथ अग्रवाल

गेहूँ की सोच

प्रभाकर माचवे

यह फागुनी हवा

फणीश्वरनाथ रेणु

फागुनी शाम

नामवर सिंह

ज़रा-ज़रा-सा

सुनीता जैन

होली

इमरोज़

होली का गीत

एकांत श्रीवास्तव

आई होली रे!

एन.पी. सिंह

रंगों का उत्सव

रविशंकर उपाध्याय

फागुनी सबेरे

शिवबहादुर सिंह भदौरिया

आज कुमकुम अबीर

क़ाज़ी नज़रुल इस्लाम

होली का गुलाल

एलांगबम नीलकांत सिंह

होली का एक रंग

दिलीप शाक्य

होली गीत

अजित पुष्कल

होली

शिवमंगल सिद्धांतकर

होली

के. सच्चिदानंदन

प्रभु से खेली क्यों होली...

ज्ञानराज माणिकप्रभु

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere