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मची है भारत में कैसी होली सब अनीति गति हो ली।

पी प्रमाद मदिरा अधिकारी लाज सरम सब घोली॥

लगे दुसह अन्याय मचावन निरख प्रजा अति भोली।

देश असेस अन्न धन उद्यम सारी संपति ढो ली॥

लाय दियो होलिका बिदेसी बसन मचाय ठिठोली।

कियो हीन रोटी धोती नर नाहीं चादर चोली॥

निज दुख व्यथा कथा नहिं कहिबे पावत कोउ मँह खोली।

लगे कुमकुमा बम को छूटन पिचकारिन सो गोली॥

बह्यो रक्त छिति पंचनदादिक मनहुँ कुसुम रँग घोली।

हाहाकार धधाक दसो दिसि मची प्रजा मति डोली॥

सत्य आग्रह डफ बजाय सब नाचत मिलि हमजोली।

असहयोग की अबिर उड़ावत आवत भरि भरि झोली॥

जय भारत कबीर ललकारत घूमत टोली टोली।

हिंदू मुसलिम दोउ भाय मिलि कपट गाँठ हिय खोली॥

चले स्वराज राह तकि तजि भय, सकल विघ्न तृण छोली।

विजय पताका लै महात्मा गांधी घर घर डोली॥

खेलिहौ कब लौं ऐसी ही बारह मासी फाग।

कुटिल नीति होलिका जल्यो, असंतोष की आग॥

स्रोत :
  • पुस्तक : स्वतंत्रता पुकारती (पृष्ठ 46)
  • संपादक : नंद किशोर नवल
  • रचनाकार : बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'
  • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
  • संस्करण : 2006

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