एक प्राचीन शहर

ek prachin shahr

क़ाज़ी ग़ुलाम मुहम्मद

क़ाज़ी ग़ुलाम मुहम्मद

एक प्राचीन शहर

क़ाज़ी ग़ुलाम मुहम्मद

(कॉलरिज के नाम)

एक प्राचीन शहर

ऊँची सुदृढ़ प्राचीर जिसके चारों ओर

ज्यों आकाश को बाँह में उठाए हो

द्वार पर दो हब्शी

नग्न तलवारें लिए खड़े हैं

और नंगे भाले लिए

चारों तरफ दुर्भेद्य कवच पहने

दिक्पाल

जो दिशाओं के रक्षक हैं

नदी पर यह पत्थर का पुल है

वास्तव में यह बीते है युग का

कोई अभिशप्त अजगर है

अब भी खोले मुँह अपना

वह नगर की दिशा में,

इसके मुख में

बैठा है एक हज़ार बरस का बूढ़ा

जादूगर

जिसकी आँखें हैं लाल अंगारा

जैसे कबूतर लाल

वह देखो कैसे उसने

मरोड़ी है गर्दन तोते की

निकल रहे होंगे प्राण

किसी प्रेत के

जो यूँही प्रविष्ट हुआ था

किसी लड़की के शरीर में

इस शहर में बहुत हैं अट्टालिकाएँ

छिटक आए हैं फूल भोजपत्र ढकी छतों पर

जैसे दहक रही हो अग्नि

हरे मैदानों में

जाली वाला पंजर पला

पाले में सतरंगी शीशे जुड़े

अमीरज़ादे खिड़कियों पर कोहनियाँ टिकाए

एक ओर सिर ऊँचा किए (दूल्हे) जा रहे हैं

दूसरी ओर हैं डोलियाँ

बिखरी है चाँदनी गली-कूचों में

चमक रहा पिछवाड़ा धूप में

सेठानियाँ सरू-वृक्षों के बीच बैठी हैं

वे अपनी सुंदर लटों में

सुगंध डाल रही हैं

चारों ओर पालतू हिरण

कुलांचे भरते रहते हैं

सुंदर-सुंदर लड़कियाँ

फूलों को रोप रही हैं

इनके सुर में जैसे

रुपहले नग़मे भरे हुए हैं

यह बाज़ार कैसा सजा-धजा है

दुलहिन की तरह

बिक रही हैं कैसी-कैसी चीज़ें

दुकानों में

समय स्वयं यहाँ रुका है

डरा-डरा-सा देख रहा है

कि कुछ मैं भी ले सकता

लोगों के खिले हुए माथे कह रहे

कि समृद्ध हैं ये, ख़ुशहाल हैं ये

हँसती हैं इनकी आँखें

उज्ज्वल हैं चेहरे

जैसे दूध धुले अजान बच्चे

इस कूचे में एक जादूगरनी है

एक दहकता अग्नि-कुंड है उसके आगे

वह एक नए आकार-प्रकार के दिए

तपा रही है

“पुराने दिए दे दो, नए दिए ले लो

उधर घंटी-सी बजी, क्या हाथी जा रहे हैं?

राजकुमार भ्रमण पर तो नहीं निकले?

घाट पर रंगीन नावें प्रतीक्षा में हैं

नगर मध्य में इक प्राचीन गुंबद खड़ा है

जैसे पत्थरों का यह निर्माण

रहस्यों को छिपाए बैठा है

इसके एक ओर

उतर रहे हैं पत्थर के जीने

वहाँ उतरने के लिए

चाहिए बड़ा विशाल हृदय

मैने यूँही देखा था

उस दर्पण कक्ष की ओर

देखते ही मैं मोहित-सा हुआ रे,

मेरे दिल

भाई—ठहरो, बात सुनो

यह लाल दुशाला ओढ़े हुए

तुम कहाँ चले

पीछे मुड़ो—ठहर जाओ

मुझे भी ले चलो

अपने साथ।

स्रोत :
  • पुस्तक : उजला राजमार्ग (पृष्ठ 109)
  • संपादक : रतनलाल शांत
  • रचनाकार : क़ाज़ी ग़ुलाम मुहम्मद
  • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
  • संस्करण : 2005
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

Additional information available

Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

OKAY

About this sher

Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

Close

rare Unpublished content

This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

OKAY