हें, हें, प्रतिनिधि

hen, hen, pratinidhi

पंकज सिंह

पंकज सिंह

हें, हें, प्रतिनिधि

पंकज सिंह

दमकते हैं इसकी काया पर लोकतंत्र के अनूठे ऐश्वर्य

पाप की ललछौंही अमरता चेहरे पर

एक स्थिर-सी मुस्कान निर्लज्जता भरी जिसकी रक्षा करती है

सामान्यजन के मरते-खपते दुखों से

दुर्भाग्य से

अपनी प्रजाति का नायाब नमूना प्रतिनिधि हमारा

यह जो नायक-सा दिखता है

भरता हमारे समय में अँधेरा घनेरा

दिखता नहीं जिसका किया-धरा

सारे माध्यम कुशलता से जिसे छिपाते हैं

यही है अपहरण के बाद बिचौलिए की भूमिका में

दुखी परिजनों का रोना नहीं सह पाता है

पैसा ले भिजवाता है अपहृत छूटता है

एहसान में दबा आँखें नीची किए

ऐसा ही हर बार छपे हुए फ़ोटो में दिखता है

अख़बार नहीं लिखता है

पीछे की असली कथा

बोलता है प्रतिनिधि

लोकतंत्र के हित में—

सबके साथ संवाद बनाए रखना होता है

यही है लोकतंत्र का मतलब

असहमत हों जो ग़लती पर हों समझ जाएँ

हें, हें, सँभल जाएँ

अंधकार में बार-बार आता है नसीहतें लिए

इसी का स्वर प्रेम और आश्वस्ति से सराबोर

ध्यान से सुनती हैं जिसे झुलसी हुई छायाएँ

भागमभाग और कोहराम में भी

यही बताता है कि अन्न नहीं है फिर भी देश है

पानी नहीं है फिर भी देश है सहो, सहो

दिन फिरेंगे

हत्या और बलात्कार की आग में भी बचाए रखो उम्मीद

चुप रहो दलितो, मैं हूँ, चुप रहो, हें हें हें

देशभक्ति के वक्तव्यों और भँड़वेपन के तनिक बाद

विधानसभा से निकलता है पसीना पोंछता

घिर जाता है प्रतिनिधि सजे-सँवरे उठाईगीरों

और समाचारवालों से

समाधान करता बयान देता तरह-तरह के शब्द फेंकता

मगर सावधान कि सच कहीं व्यक्त हो

ज़ाहिर हो नीयत का वह कोना जहाँ से

बोलता है वह धाराप्रवाह

कुछ हड़ियल बूढ़े खादीवालों से मिलते ही हाथ जोड़

झुकता है कहता है बहुत बड़ी बात है इतना त्याग आपका

करना चाहिए इस नाशुकरे समाज को धन्यवाद आपका

हें हें हें सचमुच बहुत-बहुत धन्यवाद आपका

हम सत्ता और चुनाव के फेर में पड़े आप अलग रहे

आपने आदर्श बचाए साफ़-सूफ़ रहे

हम तो दलदल में पड़े। छिः। हाय

स्रोत :
  • रचनाकार : पंकज सिंह
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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