आदमी-आदमी के बीच

adami adami ke beech

आदर्श भूषण

आदर्श भूषण

आदमी-आदमी के बीच

आदर्श भूषण

पतन की कोई दिशा नहीं होती

कहीं से भी उठ सकता है महावात

लील सकता है पके हुए खेत और बचाया हुआ घर

कभी भी डिगती हुई नाव में रिसना शुरू कर सकता है पानी

निराशा जगह नहीं खोजती

खीझती हुई जीविका में कर देती है घुसपैठ

और डुबो देती है उपलब्धताओं की डोंगी

दुर्भाग्य का कोई दिन नहीं होता

किसी चींटें पर अपनी जकड़ कसने के लिए

बैठी एकाग्रचित्त बिस्तुइया को ले उड़ेगा बाज़

और तल पर एक गहरा सन्नाटा फैल जाएगा—

उत्तरजीविताओं के संघर्ष में

विजेता की घोषणा एक खोखला विचार है

वैमनस्य का कोई रूप नहीं होता

कहीं भी उपज सकती है फ़सल ईर्ष्या की

लहलहाती हुई धीरे-धीरे पाँव पसारती

सीमा बघारती हुई क्रुद्ध चेतनाओं पर पूरा हाव डालती

किसी भी देश के किसी भी घर के किसी भी कमरे में

कमाई हुई फुलकी को एकटक निहारते किसी भी आदमी के

चीथड़े उड़ा सकता है एक मिसाइल कहीं से भी आया हुआ

लेकिन फिर भी

भूख जोड़ लेती है जून और प्रत्याशा खोज लेती है एक रैनबसेरा

पानी नाव को डुबाता नहीं बस प्राप्य आयतन पर घोषित करता है अपना आधिपत्य और

द्रष्टा कहता है—

नाव को पानी ने डुबो दिया

उत्तरजीविता एक आधारभूत प्रवृत्ति है

इसके लिए कोई न्याय-संहिता नहीं

वैमनस्य की जगह वहीं है

जहाँ आदमी-आदमी के बीच रिक्तियाँ है

एक से दूसरे की इयत्ता नापती हुई

एक से दूसरे को अलग बनाती हुई

चाहिए यह कि दोनों को मिला दिया जाए

निरुपायों के ढेर से निकले एक उपाय की तरह

शायद एक सस्ती दवा ही बचा ले उखड़ते हुए प्राण।

स्रोत :
  • रचनाकार : आदर्श भूषण
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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