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आत्म-विज्ञापन

aatm wigyapan

कांतानाथ पांडेय 'चोंच'

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और अधिककांतानाथ पांडेय 'चोंच'

    मैं सीमा का विस्तार किया करता हूँ।

    मैं जनता का उपकार किया करता हूँ।

    मैं कविता का व्यापार किया करता हूँ।

    मैं हिंदी का उद्धार किया करता हूँ।

    मैं इधर-उधर व्याख्यान दिया करता हूँ।

    मैं कवियों को वरदान दिया करता हूँ।

    मैं संपादक हूँ दिव्य अनोखा पावन,

    लेखों को मैं सम्मान दिया करता हूँ।

    कविता पढ़ने को मार दिया करता हूँ।

    कवि-सम्मेलन को प्यार किया करता हूँ।

    कविताएँ अपनी भेज एडीटर गण को,

    मैं सब गंदा अख़बार किया करता हूँ।

    दिन भर स्वदेश का ध्यान किया करता हूँ।

    ‘जागृति’ ‘उन्नति’ ‘उत्थान’ किया करता हूँ।

    पर निशा अवतरण के पीछे चुपके से,

    मैं मदिरालय में पान किया करता हूँ।

    मैं जग-जीवन का भार लिए फिरता हूँ।

    मैं वह पागल व्यापार लिए फिरता हूँ।

    अपने कुरते की जेबों के ही अंदर।

    मैं गद्य-पद्य-संसार लिए फिरता हूँ।

    मैं कवियों का सरदार बना फिरता हूँ।

    ग्रंथों का बस परिवार बना फिरता हूँ।

    मैं अंटसंट मनमाना लिखकर ही,

    अलबेला टीकाकार बना फिरता हूँ।

    मैं मधुशाला-रोज़गार लिए फिरता हूँ।

    मैं प्यालों का क़तवार लिए फिरता हूँ।

    मैं अपनी आहों के पीछे चिरवादित,

    टूटा हृत्तंत्री-तार लिए फिरता हूँ।

    स्रोत :
    • पुस्तक : पानी-पाँडे (पृष्ठ 32)
    • रचनाकार : कांतानाथ पांडेय 'चोंच'
    • प्रकाशन : चौधरी एंड संस
    • संस्करण : 1958

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