हर रोज़ मैं अपनी फ़सीलों पर आ डटता
har roz main apni fasilon par aa Datta
डैनियल वाएसबोर्ट
Daniel Weissbort

हर रोज़ मैं अपनी फ़सीलों पर आ डटता
har roz main apni fasilon par aa Datta
Daniel Weissbort
डैनियल वाएसबोर्ट
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हर रोज़ में अपनी फ़सीलों पर आ डटता,
थका-थका चढ़ता हूँ उन पर,
कम-से-कम मेरी कमर तो सीधी है!
घिसटता यहाँ से वहाँ,
जायज़ा लेता अपनी रक्षा के उपायों का,
पीटर को लूटता पॉल को चुकाता।
एक बात तय है ओ' मुझ को पता है,
कुमुक के आने की उम्मीद नहीं है,
युद्ध हारा जा चुका,
दीवारें भुरभुरा रही हैं,
सब कुछ बस कामचलाऊ है, टिकता नहीं कुछ भी,
राहत नहीं मिलने वाली है।
हर रोज़ मैं अपनी फ़सीलों पर आ डटता,
बनाता रणनीतियाँ, गढ़ता हूँ युक्तियाँ,
भटकाने भुलाने भरमाने के तरीक़े,
ऐन पराजय के रू-ब-रू
भरम सफलता का रच
उत्सव मनाने।
- पुस्तक : प्यास से मरती एक नदी (पृष्ठ 234)
- संपादक : वंशी माहेश्वरी
- रचनाकार : डैनियल वाएसबोर्ट
- प्रकाशन : संभावना प्रकाशन
- संस्करण : 2020
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