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सूर्योदय का गीत

suryoday ka geet

एंजेलोस सिकेलियानोस

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एंजेलोस सिकेलियानोस

सूर्योदय का गीत

एंजेलोस सिकेलियानोस

और अधिकएंजेलोस सिकेलियानोस

    आगे बढ़ो! ग्रीस के अंतरिक्ष में सूरज उगाने में लग जाओ!

    आगे बढ़ो! संसार के क्षितिज पर सूरज उगाने में लग जाओ!

    देखो न! उसका पहिया दलदल में धँस गया है!

    देखो न! उसकी धुरी ख़ून की कीचड़ में धँस गई है!

    आगे बढ़ो जवानो, सूरज अकेले नहीं उग सकता

    घुटने टेको, सीना अड़ाओ उसे कीचड़ से उबारने के लिए

    ख़ून के दलदल से उबारने के लिए

    आगे बढ़ो भाइयो, उसकी अग्नि-रेखाएँ हमें घेरे हैं

    आगे बढ़ो, आगे बढ़ो, उसकी लपटें हमारे चारों और

    घेरा डाले हैं!

    सृजन-कर्त्ताओं बढ़ो!...अपनी दायित्व-वृत्तियों को

    सचेत करो, माथा तानो—पाँव जमाओ—सूरज डूबने पाए...

    और मुझे सहारा दो दोस्तो...कि मैं भी उसके साथ

    डूब जाऊँ

    वह मेरे ऊपर है, मेरे अंदर, मेरे चारों ओर है

    उसके साथ मैं एक पवित्र ज्योति-वितान की तरह

    बुन दिया गया हूँ!

    एक हज़ार वृषभों के सबल स्कंध आधार को ग्रहण किए हैं

    एक द्विमुख गरुड़ अपने पंखों की छाँह किए है

    और उसकी उड़ान और फड़फड़ाहट

    मेरी आत्मा में गूँज रही है

    मेरे माथे को ढँक रही है!

    और 'दूर' और 'समीप' मेरे लिए अब एक हैं!

    नव-श्रुत-गंभीर संगीत मुझे घेरे हैं

    बढ़कर साथियो!

    उस उगने में सहारा दो ताकि सूर्य हम सबों की

    आत्मा बन जाए!

    एक नया शब्द अवतरित हो रहा है जो रंग देगा सबको

    दिमाग़ को, शरीर को, अपनी नई लपटों में, फ़ौलाद में—

    बहुत दिनों तक धरती ने नरमांस का भक्षण किया है!

    पर मोटी ताज़ी उर्वरा धरती को इस रक्त स्नान से हम

    इतनी कठोर नहीं होने देंगे

    कि नई वर्षा भी उसे मुलायम कर सके

    कल हम सब एक दर्जन बैलों की जोड़ियाँ लेकर

    इस धरती को जोतने जाएँगे, इस रक्त-स्नान धरती को

    ताकि इसमें मेंहदी फूले और जीवन का वृक्ष उगे

    और हमारी सोमलता धरती के

    कोने-कोने में छा जाए;

    आगे बढ़ो साथियो—सूर्य अकेला कैसे उगेगा?

    घुटने टेक कर, सीना अड़ाकर ज़ोर लगाओ

    कीचड़ से, ख़ून के दलदल से उबारो

    माथा तानकर, बाँहें चढ़ाकर—

    ताकि सूर्य आत्मा की तरह जगमगा सके।

    स्रोत :
    • पुस्तक : देशान्तर (पृष्ठ 176)
    • संपादक : धर्मवीर भारती
    • रचनाकार : एंजेलोस सिकेलियानोस
    • प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ, काशी
    • संस्करण : 1960

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