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घिरते अँधेरे में

ghirte andhere mein

ज्ञानेंद्रपति

अन्य

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ज्ञानेंद्रपति

घिरते अँधेरे में

ज्ञानेंद्रपति

और अधिकज्ञानेंद्रपति

    घिरते अँधेरे में

    घिरते हुए

    पेड़ों के साथ मेरी भी साँसें हो रही हैं भारी

    बाँध रहा है गोलार्ध को

    अपनी रस्सियों से अँधेरा

    चमकती तालाबों पर रख रहा है करतल

    रोशनदानों से लगा है उसका बड़ा-सा कान

    अँधेरा चाहता है अँधेरा केवल अँधेरा

    लेकिन कितनी देर?

    समुद्रों के तलांतों से निकल आएँगी ज्योतितन मछलियाँ

    अपने गाढ़कृष्ण वक्ष पर आकाश प्रकट करेगा आकाशगंगा

    पृथ्वी की टेबुल पर रख देगा आदमी अभी लैम्प।

    स्रोत :
    • पुस्तक : प्रतिनिधि कविताएँ (पृष्ठ 143)
    • संपादक : कुमार मंगलम
    • रचनाकार : ज्ञानेंद्रपति
    • प्रकाशन : राजकमल पेपरबैक्स
    • संस्करण : 2022

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