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एक उठा हुआ हाथ

ek utha hua hath

भारतभूषण अग्रवाल

अन्य

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भारतभूषण अग्रवाल

एक उठा हुआ हाथ

भारतभूषण अग्रवाल

और अधिकभारतभूषण अग्रवाल

     

     

    मुक्तिबोध के प्रति

    नाव तो हममें से किसी के पास न थी
    और सभी पार जाना चाहते थे
    तैरकर।
    हक्के-बक्के-से हम सब उथले पानी में 
    जल-क्रीड़ा करते थे
    छींटे उड़ाते थे
    और भीतर की खीझ को चुनौती बनाकर कहते थे
    ‘बोलो,
    है कोई माई का लाल
    जो इस आँधी-तूफ़ान में निकल जाए?’

    कुछ की आँखें पीछे के स्फटिक-पुलिन पर टिकी थीं
    जहाँ चंदन-नौकाएँ हाथियों-सी झूम रही थीं
    और कुछ चाहते थे
    कि पहले संवाददाता और फ़ोटोग्राफ़र आ लें—

    तभी पानी में लीक बनी
    और हमने विस्मय से देखाः
    तुम मझधार में पहुँच गए हो
    जहाँ लहरें फुंकार रही थीं
    और भँवर मुँह फाड़ रहे थे
    हमने घबराकर तार-स्वर में तुम्हें पुकारा
    पर तूफ़ान के शोर में हमारी पुकार डूब गई
    और तुम लहरों से जूझते
    लहरों में समा गए!

    तूफ़ान अब थम गया है।
    हम अब भी उथले जल में किलोलें कर रहे हैं
    क्योंकि न नाव है न फ़ोटोग्राफ़र
    पर मुझे अब भी दीख रहा है
    वहाँ दूर, मझधार में लहरों के ऊपर उठा हुआ
    पताका-सा तुम्हारा हाथ
    तुम्हारी जल-समाधि का निशान!

    स्रोत :
    • पुस्तक : प्रतिनिधि कविताएँ (पृष्ठ 50)
    • संपादक : अशोक वाजपेयी
    • रचनाकार : भारतभूषण अग्रवाल
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 2004

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