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पारिजात

parijat

प्राची

अन्य

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प्राची

पारिजात

प्राची

और अधिकप्राची

    झुकते हुए कंधों और निराश आँखों से परे

    हम एक अलग दुनिया कैसे बना सकते हैं?

    लाई के गुच्छों की तरह लटकती पारिजात की कलियाँ

    जैसे मध्यरात्रि तक छिदरकर

    भोरे-भोरे भुइयाँ लोट हो जातीं

    किसी हारी हुई रानी-सी लगती

    बाँह भींच उठाती हूँ

    कोमल संतरी बाँहें

    मेरी रातरानी

    राजा के जाने पर राज्य की माँ बन

    राज किया जाता है

    ऐसे भूमि से लिपटकर रोने वाली

    तुम नहीं हो सकतीं

    वार्ता ख़त्म होने से पहले

    बिखरी पारिजात की कलियाँ बुहार दी जातीं

    और रात की लाई मुरझाई-सी झाँकती

    अपने पूर्ण सौंदर्य की प्राप्ति से पहले

    अपना अंत देख लेती

    और सूनी छिदरती ख़ुशबू के बहाने कंधे पर बैठ पूछती,

    झुकते हुए कंधों और निराश आँखों से परे

    हम एक अलग दुनिया कैसे बना सकते हैं?

    स्रोत :
    • रचनाकार : प्राची
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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