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गीत

geet

अनुवाद : विष्णु खरे

मिक्लोश राद्नोती

अन्य

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और अधिकमिक्लोश राद्नोती

    दुख के कोड़े खाता हुआ

    मैं रोज़ चलता हूँ

    अपने ही देश में जलावतन

    और इसका शायद ही कोई मतलब है कि कब तक और कहाँ

    मैं आता हूँ; जाता हूँ, बैठता हूँ

    और आकाश का हर एक तारा

    मेरे ख़िलाफ़ है

    आकाश के तारे भी

    बादलों के पीछे छिपते हैं

    और अँधेरे में ठोकरें खाता हुआ

    मैं नदी और उसमें झुकी हुई घास तक पहुँचता हूँ

    जहाँ सरकंडे उग रहे हैं

    अब मेरे साथ कोई नहीं है

    और लंबे अरसे से

    मैंने वाक़ई नाचना नहीं चाहा है

    लंबे अरसे से ठंडी नाक वाले हिरन ने

    मेरा पीछा नहीं किया है

    मैं दलदल में से हाथ-पैर मारता निकलता हूँ

    और उसकी सतह से भाप उठती है

    और मैं डूबता हूँ

    मेरे ऊपर गीले लत्तों की तरह

    दो बाज मँडरा रहे है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : प्यास से मरती एक नदी (पृष्ठ 215)
    • संपादक : वंशी माहेश्वरी
    • रचनाकार : मिक्लोश राद्नोती
    • प्रकाशन : संभावना प्रकाशन
    • संस्करण : 2020

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