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दर्द

dard

सारुल बागला

अन्य

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और अधिकसारुल बागला

     

    एक

    ये सब कौन है जो हिसाब माँग रहे हैं 
    कह दो कि जाएँ
    मेरी आँखों में अभी इतनी आग नहीं है
    कि जला डालूँ सब कुछ।

    दो

    एक हाथ ठंडा लोहा छूता है
    जब गर्म सलाख़ धीरे-धीरे उतर रही है
    दिल में एक इंच हर घंटे की रफ़्तार से 
    या किसी और रफ़्तार से
    इतनी हैरत मैं मरता हुआ मैं पहला इंसान हूँ।

    तीन

    तो यह था कि मुझे नींद आ सकती थी
    फिर भी मैं एक उम्र सो नहीं पाया
    मर जाना बहुत आसान था मेरे लिए
    बशर्ते मेरी दिमाग़ी हालत जैसी है वैसी ही रहे
    फिर भी मैंने ख़ुद को बचाए रखा 
    ख़ुद को ख़ुद के हाथों क़त्ल हुए जाने से
    फिर भी ख़ाइफ़ रहता हूँ ऐसी अनमनी सुबहों से
    जिनमें ख़ुद को कोसने से 
    ख़ुद को नहीं रोक पाता हूँ।

    चार

    मैंने भी एक शख़्स को लिबास की तरह पहना
    फिर उसे उतारते हुए उतरने लगी मेरी खाल
    मैंने एक शख़्स को पानी की तरह पिया
    फिर उसे निकालने का ख़याल करते हुए
    मेरे शरीर का लहू निकलता है
    मैंने एक शख़्स को सुबह के लाल सूरज की तरह देखा
    फिर बीनाई जाती है उसे न देखते हुए 
    एक शख़्स मेरे बदन के रास्तों पर चला
    बदमस्त मुसाफ़िर की तरह
    रास्तों की लकीर मिटाता हुआ 
    मैं जंगल होता जा रहा हूँ— 
    पुराने रास्ते ढूँढ़ते हुए। 

    पाँच

    एक हद से गुज़र कर भी 
    दुख ने कोई हद नहीं मानी 
    एक आँसू से आगे बढ़ा तो 
    आँसुओं ने कभी हस्र का ख़याल 
    आने ही नहीं दिया
    ख़ुशी ने व्यर्थता देख कर भी
    कुछ नहीं समझा
    भूलना अच्छी बात नहीं थी मेरे लिए
    कमोबेश एक अभिशाप से बिल्कुल भी कम नहीं रही 
    यह आदत।

    स्रोत :
    • रचनाकार : सारुल बागला
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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