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आत्महत्या पर कविताएँ

आत्महत्या या ख़ुदकुशी

स्वयं का जीवन समाप्त कर देने का कृत्य है। प्राचीन युग में गर्व और अस्मिता की रक्षा और आधुनिक युग में मानवीय त्रासदी के रूप में यह कविता का विषय बनती रही है। हाल के वर्षों में किसानों की आत्महत्या ने काव्य-चेतना को पर्याप्त प्रभावित किया है। रोहिता वेमुला की आत्महत्या ने दलित-वंचित संवाद के संदर्भ में इसे व्यापक विमर्श का हिस्सा बनाया। आत्मपरक कविताओं में यह विभिन्न सांकेतिक अर्थों में अभिव्यक्ति पाती रहती है।

प्रेम कविता

गीत चतुर्वेदी

अ-प्रेम कविता

मृगतृष्णा

विदा

सर्गेई येसेनिन

आत्म-मृत्यु

प्रियंका दुबे

दर्द

सारुल बागला

फ़र्क़

आलोकधन्वा

प्रतिज्ञा

कुशाग्र अद्वैत

उम्र

सारुल बागला

अभिनय क्या आत्महत्या है

नंदकिशोर आचार्य

ईश्वर तुम आत्महत्या कर लो

रुचि बहुगुणा उनियाल

आत्महत्या

होर्खे लुइस बोर्खेस

असली-नक़ली

कृष्ण कल्पित

यातना का शिल्प

सारुल बागला

किसी ने नहीं

निखिल आनंद गिरि

किसान और आत्महत्या

हरीशचंद्र पांडे

रेशम के कीड़े

रामाज्ञा शशिधर

ख़ुदकुशी

फेदेरीको गार्सिया लोर्का

आह

मनोज कुमार पांडेय

लूली विदा

हरभजन सिंह

भरी दुपहरी

ममता बारहठ

अब ख़याल

वियोगिनी ठाकुर

विदर्भ

रामाज्ञा शशिधर

मैं सबसे क्रूर था

नवीन रांगियाल

ब्रा में हाथ

अरुण शीतांश

आत्महत्या

सुलोचना

सबसे महँगा फ़ेशियल

प्रीति चौधरी

बाधा

कुमार वीरेंद्र

राम नाम सत है

जुवि शर्मा

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

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