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बुरे समय में नींद

bure samay mein neend

रामाज्ञा शशिधर

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रामाज्ञा शशिधर

बुरे समय में नींद

रामाज्ञा शशिधर

और अधिकरामाज्ञा शशिधर

    इस बुरे समय में देर अबेर आती है नींद

    नींद के साथ ही शुरू होता है सपना

    सपने में पृथ्वी आती है नाचती नहीं

    कोयल आती है कूकती नहीं

    गोरैया आती है चुग्गा नहीं चुगती

    बादल आते हैं बरसते नहीं

    फूलों से नहीं बतियाती है तितलियाँ

    हवा से दूर भागती है गंध

    नवजात को लोरियाँ नहीं सुनाती है माँ

    परियों के महादेश नहीं घुमाती है दादी

    सपने में अब पुस्तक मेले नहीं लगते हैं

    बेर की फलियाँ नहीं पकती हैं

    सप्तर्षि तारे नहीं उगते हैं

    दूर-दूर तक दरख़्त ही नहीं दिखते

    तो घोंसलों का क्या बात!

    सपने में ग़ुर्राता है शैतान

    जो नग्न मूर्तियों को

    अक्षत और ऋचाओं से

    जगाने की चेष्टा करता है

    मूर्तियाँ सुगबुगाती हैं

    फिर मूर्च्छित हो जाती हैं

    सपने में एक साँढ़ आता है

    जो मेरी सब्ज़ियों की बाड़ी चर जाता है

    एक बिल्ली आती है

    जो मुँडेर पर सहमे

    सारे कबूतरों को खा जाती है

    एक पिशाच आता है

    जे मेरे छप्पर पर

    खोपड़ियाँ और अस्थियाँ बरसाता है

    यह कैसा सपना है

    जिसमें कभी मुर्ग़े नहीं देते बाँग

    गंगनहौनी नहीं गाती है बटगीत

    रात चलती है

    चाँद की लाश कंधे पर उठाए।

    स्रोत :
    • पुस्तक : बुरे समय में नींद (पृष्ठ 36)
    • रचनाकार : रामाज्ञा शशिधर
    • प्रकाशन : अंतिका प्रकाशन
    • संस्करण : 2012

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