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फ़ैमिली अलबम

faimili albam

विजया सिंह

अन्य

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विजया सिंह

फ़ैमिली अलबम

विजया सिंह

और अधिकविजया सिंह

    यह बाँका नौजवान, यह लाज की मारी भोली दुल्हन—

    ये मेरे माता-पिता हैं

    क्या हमारे माता-पिता जवानी के दिनों में इतने ख़ूबसूरत थे?

    ब्रिलक्रीम से पीछे की ओर क़रीने से काढ़े बाल

    एक हाथ पॉकेट में, दूसरा साइकिल के हैंडल पर।

    उनकी आँखें जो हल्के विस्मय और बहुत सारे विश्वास से संसार को देख रही हैं

    क्या वे देख पा रहे हैं अपने और हमारे भविष्य को?

    क्या उन्हें अंदाज़ है कि उनकी बेटियाँ कितनी ज़िद्दी होंगी

    और बेटे कितने भावुक और अव्यावहारिक?

    उनकी आँखें जो मेरी आँखें हैं

    क्या मेरे नज़र घुमा के पीछे देखने से

    लौट पाएँगे वे क्षण

    जब विस्मय और विश्वास इस तरह से गड्मड् थे

    कि एक की सीमा दूसरे के क्षितिज से आरंभ होती थी?

    क्या मुझे उन्हें बता देना चाहिए कि पिताजी—

    आप जो इतने हल्के हाथों मेरी दो मास की बहिन को थामे हैं,

    मेरी माँ जो बेल-बॉटम और कुरता—जो ख़ासतौर पर शायद फ़ोटो ही के लिए सिलवाए थे—पहने खड़ी हैं, और सामने, बिल्कुल सामने देख रही हैं

    मैं जो आप दोनों के बीच रखे स्टूल पर खड़ी उदंडता और मासूमियत से मुस्कुरा रही हूँ—

    आप नहीं जानते ये दुनिया कितनी जल्दी शालीनता खोने वाली है

    हवा कितनी प्रदूषित हो जाएगी और नदियाँ कितनी मैली

    आप नहीं जानते, कि वहाँ, जहाँ आप खड़े हैं काले गॉगल्स पहने

    हाथ में स्की थामे, चुँधियाती बर्फ़ के सफ़ेद पहाड़ पर

    सरहद की चौकसी में

    वहाँ से बहुत जल्द पानी के स्रोत विलीन होने वाले हैं

    ग्लेशियर हिमालय की चोटियों पर नहीं

    नीचे बंगाल की खाड़ी में पिघलते नज़र आएँगे

    माँ तुम तो बिल्कुल ही भोली हो

    तुम नहीं जानती कैसे एक दिन

    तुम्हारी बेटियाँ तुम्हारे ख़िलाफ़ बग़ावत में खड़ी होंगी

    समझते हुए भी नहीं समझ पाएँगी

    तुम्हारी अपने प्रति कठोर तपस्या को।

    स्रोत :
    • रचनाकार : विजया सिंह
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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