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अक्सर मैं पाठशाला से गृह को

aksar main pathashala se grih ko

अनुवाद : चंद्रबली सिंह

एमिली डिकिन्सन

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एमिली डिकिन्सन

अक्सर मैं पाठशाला से गृह को

एमिली डिकिन्सन

और अधिकएमिली डिकिन्सन

     

    अक्सर मैं पाठशाला से गृह को
    लौटते वक़्त गाँव से गुज़रती थी—
    अचरज करती थी कि लोग वहाँ क्या करते थे
    और क्यों वहाँ इतनी शांति रहती थी—

    उन दिनों वह साल मैं नहीं जानती थी—
    जब मेरे नाम की पुकार होगी—
    समय-चक्र के अनुसार—अन्यों के
    विदा होने के पहले ही—

    डूबते सूरज से भी बढ़कर यहाँ शांति—
    प्रातः काल से बढ़कर शीतलता—
    डेज़ी के फूलों में यहाँ आने का साहस है—
    और उड़ते हुए पक्षी उतर सकते यहाँ—

    इसलिए तुम जब थक जाना—
    या अपने को चकित या उदासीन पाते हो—
    विश्वास करना उस स्नेहमय वचन में
    मिट्टी के नीचे जो पड़ा है—
    चिल्लाना “मैं हूँ”, गुड़िया थामो” चिल्लाना,
    और मैं अंक में भर लूँगी!

             
    स्रोत :
    • पुस्तक : एमिली डिकिन्सन की कविताएँ : संचयन (पृष्ठ 34)
    • रचनाकार : एमिली डिकिन्सन
    • प्रकाशन : वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली
    • संस्करण : 2011

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