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एक स्वर उठा

ek svar utha

श्री अरविंद

अन्य

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श्री अरविंद

एक स्वर उठा

श्री अरविंद

और अधिकश्री अरविंद

     

    एक स्वर उठा जो इतना मधुर था और भीषण 
    कि प्रेम और पीड़ा से इसने हृदय को कर दिया रोमांचित, मानो नरक संपूर्ण 
    एक विकट अलंघनीय ध्वनि में संपूर्ण स्वर्ग के साथ समस्वरित 
    अतल गहराइयों से जन्मा प्रवहमान होने के लिए सर्वोच्च शिखरों पर, 
    यह वहन करता था सकल दुःख जिसमें प्राणियों की आत्माएँ होती हैं सम्मिलित, 
    तदपि यह प्रत्येक हर्षातिरेक को, जिसे देवगण कर सकते सहन, करता था इंगित 
    हे भागवत सूर्य तुम आए हो मेरी घोर काली रात्रि के भीतर 
    व्यक्त करने और जानने के लिए इसके गहरे गर्त्त और लाने के लिए प्रकाश अमर।

    स्रोत :
    • पुस्तक : श्री अरविंद | चुनिंदा कविताएँ (पृष्ठ 167)
    • रचनाकार : श्री अरविंद
    • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत
    • संस्करण : 2020

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