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एक स्त्री का रोज़नामचा

ek istri ka roznamcha

अनिल त्रिपाठी

अन्य

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अनिल त्रिपाठी

एक स्त्री का रोज़नामचा

अनिल त्रिपाठी

और अधिकअनिल त्रिपाठी

    देखो सँभलकर नहाना

    हवा चोर है वह उड़ा सकती है पर्दे

    और चुरा सकती है तुम्हारी

    अब तक सिरजी हुई लाज की विरासत

    लगा लो जल्दी-जल्दी झाड़ू और पोछा

    कि कहीं कोई जाए

    और तुम्हारे एक कमरे की तख़्ती पर

    पहला ही हर्फ़ देर से लिखा जाए

    अभी सो रहा है तुम्हारा बच्चा

    इसलिए निपटा लो कुछ काम

    ताकि बिना चिड़चिड़ाए दे सको

    उसे दूध और बिस्कुट

    देखो जल्दी करो

    अभी धुलने हैं कपड़े

    जबकि तुम्हारी उंगलियाँ सूखे पापड़ की तरह

    भरी हैं चकत्तों से

    वह तुम्हारा आलसी पति

    अख़बार की एक एक सतर को लगा है

    जज़्ब करने में और कुछ देर बाद कहेगा

    उसे देर हो रही ऑफ़िस जाने में

    करो कुछ करो कुछ नहीं तो

    सेंक दो-दो चार रोटियाँ

    बना दो कोई भी सब्ज़ी

    या फिर वही रोज़ की दाल

    हाँ एक बात और कभी मत भूलना

    अलविदा करना अपने वर्तमान को

    और हिलाने के लिए उठाना हवा में अपना हाथ

    भले ही वह प्रतीत हो महज़ हवा में टँगा-सा

    कहो किस तरह लगता है

    तुम्हें इस तरह का रोज़नामचा

    सच-सच बताना

    तुम्हारी आँखों के नीचे गहरा काला क्यों है?

    स्रोत :
    • रचनाकार : अनिल त्रिपाठी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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