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एक गहरी चुप्पी

ek gahri chuppi

वंदना पराशर

अन्य

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वंदना पराशर

एक गहरी चुप्पी

वंदना पराशर

और अधिकवंदना पराशर

    इतिहास में दर्ज हो जाएँगी

    कल की तरह ही

    आज की घटनाएँ भी

    वे तमाम बातें

    इतिहास के पन्नों से निकलकर

    क्या कभी चीख़ेंगी?

    क्या कभी माँगेंगी हिसाब

    काली स्याह रात की उन तमाम घटनाओं का

    जहाँ मानवता ने साध रखी थी

    एक गहरी चुप्पी

    दृश्य तेज़ी से घटित हो रहा था

    पर आँखें बंद थीं सबकी

    कराहती आत्माओं की पुकार सुनकर भी

    सबने बंद कर लिए थे अपने कान

    चौराहे के बीचोबीच सजी

    उन तीनों मूर्तियों की शक्लें भी

    अब बदल गई हैं

    एक ने अपनी आँखों पर

    काला चश्मा चढ़ा रखा है

    दूसरे ने अपने कान में खोस लिया है ईयरफ़ोन

    जिसमें बज रहा था कोई पॉप म्यूजिक

    और तीसरे की ज़बान निरंकुश होकर

    लपलपा रही थी बाहर को

    दृश्य तेज़ी से घटित हो रहा था और

    सामने जीता-जागता बुतों की शक्ल में

    एक लंबी भीड़ खड़ी थी

    सभ्यता और संस्कृति का बोझ बनकर।

    स्रोत :
    • रचनाकार : वंदना पराशर
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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