एक चिड़िया लगाती रहती थी गुहार

ek chiDiya lagati rahti thi guhar

चंद्रेश्वर

चंद्रेश्वर

एक चिड़िया लगाती रहती थी गुहार

चंद्रेश्वर

हम ऐसे नगर में बसने को थे

शापित जहाँ क़ायदे का

कोई पड़ोस नहीं बचा था

तटस्थता ही सर्वोपरि थी

जीवन मूल्य बनकर

प्रतिरोध अब था पर्याय

निरी मूर्खता का

जिसे कुछ भी हो जाता था

हासिल

रसूख़दार माना जाता था

वो ही

पद पैरवी पुरस्कार से ही

आँकी जाती थी प्रतिष्ठा

किसी मनुष्य की

सरकारी संस्थानी

'साहित्यभूषण' की

उपाधि ही

पहचान थी

बड़ा साहित्यकार होने की

जो एक दिन कक्षा में पढ़ाता नहीं था

वह शिक्षक शिरोमणि का सम्मान पाता था

चरण चाँपना ही मानी जाती थी

किसी की

सबसे बड़ी क़ाबिलियत

प्रतिभाएँ पानी भरती थीं

नव कुबेरों के जाकर

घर-घर

होकर मज़बूर

डर समाया रहता था

पुराने पंचों की

न्याय प्रक्रिया में भी

गेहुअन साँप बनकर

ईमान की बात थी

बहुत दूर की कौड़ी

न्यायाधीश भी घबराए रहते थे

फ़ैसला लिखने के पहले

हिलने लगती थी

उनकी क़लम की नीबें

थरथराने लगती थी

उनकी मेज़ें

फ़ाइलें हवा में उड़कर

ग़ायब हो जाती थीं

रात-दिन

एक चिड़िया लगाती रहती थी

गुहार... खूँटा में मोर दाल बा!

मगर बढ़ई से लेकर राजा तक

सब चुप्पी मारे बैठे रहते थे

अधिकाँश पत्रकार भागते थे

सच्चाई से

कोसों दूर

घटना के असली तथ्यों से

कोई मतलब नहीं रह गया था

उनका

कहीं किसी सत्य के पक्ष में

नहीं देती थी सुनाई

जय-जयकार

वह कब का चला गया था

खटिया उड़ासकर कोमा में

किसी हेठार के गाँव में

जहाँ अब भी सड़क

एक दुःस्वप्न की तरह थी

शहर के चौक बाज़ार में खौफ़ तो देखिए

डोमा जी उस्ताद का

गजानन माधव मुक्तिबोध की कविता

'अँधेरे' में से निकल बाहर

दिन-दहाड़े ही मचा रहा था

गुंडई

वह एक क़ायर समय था जब

किसी गुंडा को गुंडा कहने से डरते थे

शरीफ़ लोग

और रिवाज़ बन रहा था नया

किसी ज्ञानी और तर्कशील को ही

गुंडा कहने का

झूठ का नगाड़ा बजता था

देश-दुनिया में

उसी की तरफ़दारी में

निकलती थी बैंडपार्टी

बजती थीं शहनाइयाँ

जीवन में मित्रता नहीं

शेष बची रह गई थीं

धूर्तताएँ...दुरभिसंधियाँ...

जटिलताएँ

यक़ीन, भरोसा, आशा उम्मीद जैसे

ख़ूबसूरत शब्द बचे रह गए थे

केवल कवियों की

कविताओं में ही

आदमी ही आदमी को

काट खाने को था बेताब

दाग़दार होने से नहीं डरता था

कोई भी

अब ये ही तो अलंकरण बचा था

सभ्य नागरिकों के लिए

इस नई सभ्यता मे।

स्रोत :
  • रचनाकार : चंद्रेश्वर
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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