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दुनिया के लिए ज़रूरी है

duniya ke liye zaruri hai

विवेक चतुर्वेदी

अन्य

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विवेक चतुर्वेदी

दुनिया के लिए ज़रूरी है

विवेक चतुर्वेदी

और अधिकविवेक चतुर्वेदी

    बहुत-सी ख़ूबसूरत बातें

    मिटती जा रही हैं दुनिया से

    जैसे गौरैया,

    जैसे कुनकुनी धूप,

    जैसे बचपन,

    जैसे तारे,

    और जैसे एक आदमी, जो केवल आदमियत की जायदाद

    के साथ ज़िंदा है।

    और कुछ ग़ैरज़रूरी लोग न्योत लिए गए हैं

    जीवन के ज्योनार में

    जो बिछ गई पंगतों को कुचलते

    पत्तलों को खींचते

    भूख भूख चीखते

    पूरी धरती को जीम रहे हैं।

    सुनो... दुनिया के लिए ज़रूरी नहीं है मिसाइल

    ज़रूरी नहीं है अंतरिक्ष की खूँटी पर

    अपने अहम् को टाँगने भेजे गए उपग्रह

    ज़रूरी नहीं हैं दानवों-सी चीख़ती मशीनें

    हाँ... क्यों ज़रूरी है मंगल पर पानी की खोज?

    ज़रूरी है तो आदमी... नंगा और आदिम

    हाड़-मांस का,

    योग-वियोग का,

    शोक-अशोक का,

    एक निरा आदमी

    जो धरती के नक़्शे से

    ग़ायब होता जा रहा है

    उसकी जगह उपज आई हैं

    बहुत-सी दूसरी प्रजातियाँ उसके जैसी

    पर उनमें आदमी के बीज तो बिल्कुल नहीं हैं।

    इस दुनिया के लिए ज़रूरी हैं

    पानी, पहाड़ और जंगल

    ज़रूरी है हवा और उसमें नमी

    कुनकुनी धूप, बचपन और

    तारे... बहुत सारे।

    स्रोत :
    • रचनाकार : विवेक चतुर्वेदी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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