दुःख बाँटते हुए

duःkh bantte hue

पायल भारद्वाज

पायल भारद्वाज

दुःख बाँटते हुए

पायल भारद्वाज

किसी का दुःख जानते हुए मैंने जाना

कितनी खोखली है दुःख बाँटने की अवधारणा

गले के अंतिम स्वर से निकलने वाली चीख़ें

सीने से उठती हूक

रोम-रोम पिराती टीस और कराहटें

क्या सच में बाँट सकते हैं हम

किसी की बेचैनियाँ

हम नहीं रोक सकते उन स्मृति तरंगों को

जो नाभि से संचारित होकर झकझोर देती हैं

मस्तिष्क के तंतुओं को

दिन में बहत्तर बार

नहीं सुखा सकते

हृदय के भीतर उमड़ता भाव-सागर

जिसमें उठता ज्वार-भाटा बार-बार तोड़ देता है

आँखों के तटबंध

या फिर दुःख बाँटना भी एक कला है शायद

जिसके ‘क’ से भी अनभिज्ञ हूँ मैं

मैं चाहकर भी नहीं बदल पाई

अपनी मुस्कुराहट से किसी के आँसू

किसी की जागती आँखों से

अपनी उबासियाँ!

स्रोत :
  • रचनाकार : पायल भारद्वाज
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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