दो समलैंगिक लड़के : एक कराहती हुई ऊब

do samlaingik laDke ha ek karahti hui uub

कृति राज

कृति राज

दो समलैंगिक लड़के : एक कराहती हुई ऊब

कृति राज

और अधिककृति राज

    (एक)

    शून्य! 

    जड़!

    निष्प्राण! 

    अंध कोठरी में छिपे दो प्रेमी

    संकुचित!

    थर्राए!

    भयभीत!

    टॉर्च की रोशनी से डरते हैं वो...।

    प्रार्थना:

    पड़ा रहने दो हमें 

    नीरव कोलाहल में 

    अंध गुहावास में 

    अपदस्थ उच्छवास में।

    एक आवाज़:

    डरो मत!

    आओ! बाहर आओ! 

    उसे छूने दो लालटेन

    सेंकने दो, दो-दो ठंडे हाथों को

    गर्म लौ से।

    मत छूने दो छाया 

    रही जो नैरंतर्य अबाध गति का साया।

    उठा दो उसकी बाँह 

    लहरा दो हवा में

    बाहर पिशाची भीड़ है

    इन्हें बीच से निकलना है।

    (दो)

    फैलाने दो उसे अपनी बाँह  

    जैसे फैलता है इंद्रधनुष

    झमाझम बारिश में

    आँखों के आँसू घुलते जाते हैं पानी में। 

    बारिश की बूंदे

    सरकती है गालों से ग्रीवा की ओर

    धीरे-धीरे इन्हें 

    बंधने दो पाश में।

    शाँत! शाँत! शाँत!

    होने दो उन्हें प्रेमरत।

    ये नए युग के नए हँस हैं।

    (तीन)

    देखा था सड़क पार करते—

    नन्हें हाथों को बड़े हाथों में

    एक प्रेमिका के हाथों को प्रेमी के हाथों में।

    इन्हें भी करने दो

    हाथों में हाथ डाल सड़क पार 

    यह है— 

    नए युग के नए हँस का प्यार। 

    (चार)

    जब से सुना— 

    किसी आमिर हमज़ा ने कहा है—

    बोगनवेलिया गुलदस्ते का नहीं बालों का फूल है

    वे एक-दूसरे के बालों में फूल खोंस रहे हैं।

    (पाँच)

    सुबह-सुबह 

    बिस्तर पर

    गर्दन से लिपटा हस्तपाश ढीला होता है

    नितंब निढाल ठंडा पड़े हैं

    जाँघें सर्पीलाकार पसरी हैं 

    अलमीरा में लगे शीशे में अपना नहीं भाई का चेहरा दिखता है

    किताबों में रखे सूखे गुलाब प्रेमिका की बद्दुआओं की तरह चीखते हैं

    दीवार पर टंगा हुआ कैलेंडर पिता की याद दिलाता है—शादी कब?

    मोबाइल के वॉलपेपर पर माँ की तस्वीर है

    घर की हरेक सामग्री में किसी किसी की तस्वीर है सिवाए उसके। 

    पल भर की उदासीनता!

    हताश आँखें दूसरी आँखों को पढ़ती हैं...

    दोनों लड़के एक-दूसरे को भींच लेते हैं 

    यही उनकी असली तस्वीर है।

    (छह)

    गुलमोहर तले खड़े प्रेमी-प्रेमिकाओं को फूल चुनते देख

    गुलमोहर इन्हें चिढ़ाते हैं

    (सात)

    गुलाब भी डरता है— 

    प्रेम की परिभाषा बदल रही है

    चंपा अपनी ख़ुश्बू अंदर सोख लेती है 

    गुड़हल सड़े हुए गुलर जैसा बजबजाता है 

    रात रानी से रास्ता गमगमाता नहीं

    मोगरा तिरछी निगाहों से तिरस्कृत करता है

    लेकिन...

    कोने में खड़ा कैक्टस आशा दिलाता है और

    हरी दूब उनके पैरों के दबाब को जानती है—

    इसमें वज़न कम, डर ज़्यादा है। 

    ये युगल लड़के एक-दूसरे को गुलाब, गुलमोहर, चम्पा, मोगरा नहीं 

    कैक्टस और दूब देना चाहते हैं। 

    (आठ)

    किताबों के बीच सर रख 

    बहुत ज़ोर से रोना चाहता है 

    पन्नों को नोंच डालने की मंशा है 

    नाचते हुए अक्षरों को पकड़ कर मसल देना चाहता है 

    वह भाग जाना चाहता है 

    वह ज़ार-ज़ार होकर रोना चाहता है 

    किंतु...

    उसके कंधे पर साथी का हाथ पड़ते ही सारे आँसू सूख जाते हैं।

    (नौ)

    नेहरू की मूर्ति के पास खड़ा होकर हँसता है— 

    समाजवाद झूठा है।

    मार्क्स का हँसिया उसे डराता है

    विवेकानंद की मूर्ति को देख राष्ट्रवाद पर तरस खाता है

    वह अपने लिए एक नया समाज चाहता है 

    एक नई मूर्ति चाहता है।

    (दस)

    मुसलमानों के अल्लाह नज़र नहीं आते

    हिंदुओं के ईश्वर मंदिरों में मूर्तिमान हैं

    सिक्खों के गुरुद्वारे में 

    ईसाइयों की चर्च में

    किन्नरों के देव अर्धनारीश्वर यदा-कदा दिखते हैं

    दोनों लड़के सिज़दे में हैं 

    साष्टांगवत हैं

    याचना की मुद्रा में हैं 

    अपने लिए एक नया देवता चाहते हैं।

    (ग्यारह)

    इस उदास नस्ल में

    चूहे की मौत की ख़बर से अख़बार रंगीन है

    खेल पृष्ठ क्रिकेट से भरा है 

    संपादकीय पाकिस्तानी भुखमरी से सुसज्जित है 

    धारा 377 गाह-ब-गाह कोने में सिमटी दिख जाती है 

    पाठक पन्ना पलट देते हैं।

    स्रोत :
    • रचनाकार : कृति राज
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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