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दो दृश्य

do drishya

मैथिलीशरण गुप्त

अन्य

अन्य

कहो आज किस ओर चलोगे?

देखोगे किस ओर भला?

एक ओर वीरत्व-विभव है,

एक ओर कारुण्य-कला!

एक दृश्य है चित्र-रूप में

आज तुम्हारे सन्मुख मित्र,

और दूसरा प्रतिबिंबित है

मनोमुकुर में महा विचित्र!

प्रबल पांडवों के प्रताप का

एक ओर है प्रखर प्रकाश,

एक ओर भारतमाता के

अगणित सूर सुतों का नाश।

एक ओर विजयी बलशाली

धर्मराज का है अभिषेक,

एक ओर मृत वीरवरों की

विधवाओं का शोकोद्रेक॥

पांचजन्य के पुण्योदक से,

प्रभु पुरुषोत्तम के द्वारा,

एक ओर तो धर्मराज के

सिर पर गिरती है धारा।

एक ओर उस कुरुक्षेत्र से

बढ़ कर रण का रक्त-प्रवाह,

डुबा रहा है आर्य-भूमि का

बल, विक्रम, साहस, उत्साह॥

आर्यों के एकाधिपत्य का

एक ओर उत्सव भारी,

(बुझने के पहले ज्यों दीपक

बढ़ता है विस्मयकारी)

एक ओर अष्टादश-संख्यक

अक्षौहिणी चमू का अंत,

जहाँ शकुंत-शृगाल-गणों का

विकृत नृत्य दृग्गति पर्यंत॥

राजकीय दानों की अद्भुत

एक ओर है धूम बड़ी,

एक ओर उस रण के कारण

सर्वनाश की त्राहि पड़ी।

एक ओर है फुल्ल कुसुम-सा

आमोदित यह अनुपम देश,

एक ओर उस फुल्ल कुसुम में

विकट कीट का हुआ प्रवेश॥

एक ओर जातीय-पताका

चित्र-तुल्य छवि पाती है,

एकच्छत्र सु-राज्य हमारा

ऊँचै चढ़ दिखलाती है।

एक ओर नि:शंक भाव से

दल-बल-सहित विजय के अर्थ,

अन्य देशियों के आने पर

होंगे अब क्या यत्न समर्थ?

एक ओर फूलों की वर्षा,

मानों खेल रहे तारे,

पड़े अनंत चिताओं के हैं

एक ओर वे अँगारे।

एक ओर तो मातृभूमि पर

मधु-धारा-सी ढलती है,

एक ओर उस मृतवत्सा की

छाती धक-धक जलती है॥

भिन्न-भिन्न भावों का ऐसा

होगा आविर्भाव कहाँ?

एक ओर गौरव-गरिमा है

एक ओर है पतन यहाँ!

एक ओर बल का विकास है

एक ओर है उसका ह्रास,

एक ओर उल्लास-वास है

एक ओर है श्वासोच्छ्वास!

समझ नहीं पड़ता है कुछ भी

उधर जाएँ या रहें इधर,

तुम्हीं कहो अब किधर चलोगे,

देखोगे हे मित्र! किधर?

एक ओर हो रहा धर्म का

जयजयकार अपार अनंत,

एक ओर कातर कंठों का

हाहाकार हरे हा हंत!

भारत की दोनों आँखों की

भिन्न-भिन्न है आज छटा,

एक आँख प्रेमाश्रु पूर्ण है,

एक आँख शोकाश्रु-घटा।

आओ तब दोनों आँखों से

देखें हम भी दोनों ओर,

एक आँख से अपनी उन्नति

एक आँख से अवनति घोर॥

स्रोत :
  • पुस्तक : मंगल-घट (पृष्ठ 135)
  • संपादक : मैथिलीशरण गुप्त
  • रचनाकार : मैथिलीशरण गुप्त
  • प्रकाशन : साहित्य-सदन, चिरगाँव (झाँसी)
  • संस्करण : 1994

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