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दीवार पर मैं अपना सर पटकती हूँ

divar par main apna sar patakti hoon

अनुवाद : चन्द्रप्रभा पाण्डेय

अन्ना स्विर

अन्य

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अन्ना स्विर

दीवार पर मैं अपना सर पटकती हूँ

अन्ना स्विर

और अधिकअन्ना स्विर

    जब मैं थी बच्ची

    रखती थी अपनी उँगली आग पर

    ताकि बन सकती मैं संत।

    जब मैं किशोरी थी

    हर रोज़ दीवार पर मैं अपना सर पटकती थी।

    जब मैं युवती थी

    दुछत्ती की खिड़की से घुस

    छत पर जाती

    ताकि मैं छलाँग लगा सकूँ।

    जब मैं थी स्त्री

    मेरे सारे बदन में चलती थी जुँए

    जब मैं करती अपना स्वेटर इस्त्री,

    तो वे चिटक कर मरती थी।

    मैंने प्रतीक्षा की प्राण दंड के लिए

    साठ मिनटों तक।

    छः बरस मैं रही भूखी।

    फिर मैंने दिया जन्म एक बच्चे को

    वे मुझे चीर रहे थे

    बिना मुझे सुलाए।

    फिर एक वज्रपात में

    मेरी हुई मृत्यु तीन बार

    और बिना किसी की मदद के

    तीनों बार मृतकों के बीच से मैं निकल आई।

    तीन पुनर्जन्मों के बाद

    अब मैं कर रही हूँ आराम।

    स्रोत :
    • पुस्तक : दरवाज़े में कोई चाबी नहीं (पृष्ठ 394)
    • संपादक : वंशी माहेश्वरी
    • रचनाकार : अन्ना स्विर
    • प्रकाशन : संभावना प्रकाशन
    • संस्करण : 2020

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