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शहर

shahr

अनुवाद : पीयूष दईया

सी. पी. कवाफ़ी

अन्य

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और अधिकसी. पी. कवाफ़ी

    बोले तुम, मैं दूसरी ज़मीन पर जाऊँगा, मैं दूसरे समुद्र पर जाऊँगा।

    खोज लिया जाएगा दूसरा शहर, इससे बेहतर दूसरा।

    भाग्य की भर्त्सना है मेरी हरेक कोशिश;

    और मेरा दिल है—एक मुर्दे जैसा—दफ़्न।

    कितनी देर इस बंजर भूमि में बचा रहेगा मेरा मन।

    कहीं भी कर लूँ मैं अपनी आँखें, जहाँ कहीं भी अपनी नज़रें

    मैं देखता हूँ यहाँ अपने जीवन के काले खंडहर,

    जहाँ ख़त्म करते और फ़जूल गँवाते गुज़ार दिए अपने बहुतेरे साल।

    तुम्हें नहीं मिलेंगी नई ज़मीनें, तुम्हें नहीं मिलेंगे नए समुद्र।

    शहर तुम्हारे पीछे चलेगा। तुम भटकोगे वैसी ही

    गलियों में। और तुम बूढ़े हो जाओगे वैसे ही मोहल्लों में;

    और पड़ जाओगे तुम सफ़ेद इन्हीं वैसे ही घरों में।

    हमेशा तुम पहुँचोगे इसी शहर में। कुछ और उम्मीद मत करो—

    तुम्हारे लिए कोई जहाज़ नहीं, कोई मार्ग नहीं।

    यहाँ तुमने ख़त्म कर लिया जैसे ही अपना जीवन

    इस छोटे खाने में, तुमने इसे बरबाद कर लिया सारी दुनिया में।

    स्रोत :
    • पुस्तक : प्यास से मरती एक नदी (पृष्ठ 78)
    • संपादक : वंशी माहेश्वरी
    • रचनाकार : सी. पी. कवाफ़ी
    • प्रकाशन : संभावना प्रकाशन
    • संस्करण : 2020

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