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देवताओं की खोज

devtaon ki khoj

शाम्भवी तिवारी

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शाम्भवी तिवारी

देवताओं की खोज

शाम्भवी तिवारी

और अधिकशाम्भवी तिवारी

    मैं कई जगहों पर खोज चुका हूँ देवता!

    बल्कि मेरी अब तक की आयु

    आयु को रचने वाले की ही खोज में निकली है

    और मैंने समझा है

    कि मनुष्य को देवता इसीलिए नहीं मिलते

    क्योंकि उसने उन्हें स्वर्गों में बसा रखा है

    और जो उतनी दूर की नहीं सोच पाते

    उनके देवता भी हाथी-घोड़ों पर बैठ आते हैं

    और बसते हैं ऊँचे पहाड़ों और घने जंगलों में

    और देवता को मनुष्य इसीलिए नहीं मिलते

    क्योंकि मनुष्य उन्हें बुलाते हैं तो

    सावन ढले एकाध महीनों की रामलीलाओं में

    और फिर भेज देते हैं वापस

    बिना उनका पता-ठिकाना जाने

    और देवता फिर खो जाते हैं!

    पर मेरा मानना है कि देवता बहुत पुराने हैं

    स्वर्गों और रामलीलाओं से

    इसीलिए वो इतिहास से आते हैं!

    मेरा मानना है कि भगवान रहा होगा वो

    जिसने पहली बार दो पत्थर खटकाकर आग जलाई होगी

    और ठंड में ठिठुरते वनवासी के लिए

    बन गया होगा आग का ही पर्याय!

    ईश्वर रहे होंगे वे कुत्ते, गाय और घोड़े

    जो जंगलों से निकलकर चले आए होंगे

    खेतों में जूझते पहले किसानों तक

    और जो अंततः कहलाए होंगे देवताओं की सवारियाँ!

    देवता रहे होंगे पहली बार

    पहिये, हल और छेनियाँ तराशने वाले

    और जिन्हें संज्ञा दे दी गई होगी

    खदानों, भट्टियों और खेतों के विश्वकर्मा की!

    परमात्मा रहे होंगे लिखने, सिखाने और पढ़ाने वाले,

    बटोरने और बाँटने वाले

    और वही जाने गए शिव, ब्रह्मा, विष्णु, रमा, शारदा कइयों नामों से!

    अपनों के लिए प्रकट से प्रकृति तक लड़ जाने वाले बने होंगे

    दुर्गा, राम और कृष्ण आदि

    और देवताओं के चमत्कार इतने तक ही सीमित हैं

    कि उन्हें सहज ही भुला दिया है इतिहास ने!

    और ऐसे ही शायद मुझे मिल गए हैं सारे देवता

    जो कभी हुए थे और अब जो हो सकता है

    वह है सिर्फ़ हम सबका उन पर विश्वास

    और यही मेरी खोज का अंत है

    और देवताओं की खोज का आरंभ!

    स्रोत :
    • रचनाकार : शाम्भवी तिवारी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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