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दिशा-संकेत

disha sanket

कुमार विकल

अन्य

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कुमार विकल

दिशा-संकेत

कुमार विकल

और अधिककुमार विकल

    कभी-कभी बहुत अजीब लगता है

    कि मैं किसी मसीहा की तरह

    अपने हाथों मैं दिशा संकेत सँभाले

    भीड़ के साथ दौड़ता जाता हूँ

    जबकि मैं जानता हूँ

    कि भीड़ की आँखें नहीं होती

    केवल आवाज़ होती है

    आवाज़ के स्लेजों पर

    फिसलती भीड़ के लिए

    कोई दिशा-संकेत क्या अर्थ रखता है

    दिशाहीनों की भीड़ में

    दिशा का बोध अजनबी बनाता है

    और दुविधा के किसी कमज़ोर क्षण में

    डूबती आवाज़ के संग

    दिशा-संकेत हाथों में काँप जाता है

    आत्म-संकट के उस कठिन क्षण

    कोई दिशा-संकेत सँभाले

    या अपनी डूबती आवाज़ को थामे

    स्रोत :
    • पुस्तक : निषेध (पृष्ठ 161)
    • संपादक : जगदीश चतुर्वेदी
    • रचनाकार : कुमार विकल
    • प्रकाशन : ज्ञान भारती प्रकाशन
    • संस्करण : 1972

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