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देह-राग : छह

deh raag ha chhah

कंचन जायसवाल

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कंचन जायसवाल

देह-राग : छह

कंचन जायसवाल

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    उसकी देह शीशे की तरह पिघलती है

    परदे के उस तरफ़ बैठा पुरुष

    उत्तेजना के ज्वार में चूमता है

    उसकी देह

    कई-कई बार

    औरत करवट लेती है

    और नींद में पानी के भीतर

    छलाँग मार देती है

    उसी समय पुरुष

    सुदूर किसी समुद्री-यात्रा में है

    यहाँ रात है

    वहाँ दिन

    यही उजाले-अँधेरे का खेल

    बदस्तूर जारी है

    देह के उजाले-अँधेरे की तरह

    अपने हाथ से छूकर

    जिस समय को फिसल जाने दिया तुमने

    वही अँधेरा समय फन फैलाए

    पूरे जीवन को लील लेता है।

    स्रोत :
    • रचनाकार : कंचन जायसवाल
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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