देह-राग : चार

deh raag ha chaar

कंचन जायसवाल

कंचन जायसवाल

देह-राग : चार

कंचन जायसवाल

यह आग है

जो लील रही है मुझे—

देह की आग

मैं जितनी बार

इसमें प्रवेश करती हूँ

यह दुगुनी होकर धधकती है

मैं अगर शिला में बदल जाती

तब भी कामना

मेरे भीतर जलती रहती

कामना कि कोई पुरुष

पाँव के अँगूठे से छूकर

मेरी देह को जिला दे

मैं पाकर अँगूठे का स्पर्श मात्र

अपनी देहाग्नि में

समेट लेती समूचे ईश्वर को।

स्रोत :
  • रचनाकार : कंचन जायसवाल
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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