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अबॉर्शन

abaurshan

दामिनी यादव

अन्य

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दामिनी यादव

अबॉर्शन

दामिनी यादव

और अधिकदामिनी यादव

    अभी तो तुम्हारे आने का

    आभास भर हुआ था,

    अभी तो मेरी कोख को तुमने

    छुआ भर था

    कि सब जान गए,

    तुम्हारे वजूद की आहट

    पहचान गए,

    नहीं, तुम्हारा वजूद

    नहीं है क़ुबुल,

    लड़कियों का जन्म तो होता ही है

    पिछले कर्मों या सेक्स की भूल,

    ये भूल इस परिवार में

    कोई नहीं अपनाएगा।

    कल मुझे अस्पताल

    ले जाया जाएगा और

    मेरी जाग्रति को

    एनेस्थीसिया सुँघाया जाएगा,

    मैं भी नहीं करूँगी प्रतिकार

    अनसुनी ही कर दूँगी तुम्हारी

    अपने गर्भ के गहन अंधकार से आती मौन पुकार,

    डॉक्टर डालेगी मेरी योनि में जो

    लोहे के औज़ार

    उनके स्पर्श से तुम

    मेरी कोख में ही कहीं

    घबरा के सिमटना चाहोगी,

    शायद किसी अनचीन्ही आवाज़ में

    मुझे चीत्कार के ‘माँ’ कहके बुलाओगी,

    पर अपने नन्हे-नरम-नाज़ुक

    हाथ, पाँव, गर्दन, सीने को

    उन औज़ारों की काँट-छाँट से

    बचा नहीं पाओगी,

    क्योंकि लेने लगे हैं वो आकार।

    कन्या!

    इस दुनिया में आज भी

    तुम नहीं हो स्वीकार।

    तुम्हारे वजूद के टुकड़ों को

    क्लीनिक की नालियों में बहा आऊँगी

    और इस तरह मैं भी

    लड़की जनने के संकट से

    छुटकारा पा जाऊँगी,

    वरना इस दुनिया में मैं तुम्हें हर क़दम पर,

    किस-किससे बचाऊँगी।

    अगर बचा सकी किसी तरह आज, अपना ही वजूद,

    तभी तो क्रांति लाऊँगी,

    मिट जाएगी मेरी पीढ़ी शायद

    करते-करते प्रयास,

    तब जाकर कहीं मैं इस दुनिया को

    तुम्हारे लायक कर पाऊँगी,

    पर अभी तो बिटिया मेरी!

    तुम्हें मैं आने दूँगी इस दुनिया में और

    और अभी मैं तुम्हें जनम नहीं दे पाऊँगी,

    जनम नहीं दे पाऊँगी,

    जनम नहीं दे पाऊँगी...

    स्रोत :
    • रचनाकार : दामिनी यादव
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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