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दर्ज़ होंगे वो जख़्म

darj honge wo jakhm

सरिता सैल

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सरिता सैल

दर्ज़ होंगे वो जख़्म

सरिता सैल

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    इतिहास के पन्नों पर

    दर्ज़ होंगे वो तमाम जख़्म

    हिम की घाटियों में

    जिस दिन

    ऋषियों के कमंडल में

    पापियों ने

    ख़ून भर दिया था

    उसी दिन मेंरे देश का

    एक अंग सुन्न हो गया था

    दर्ज़ होंगे इतिहास के पन्नों पर

    सफ़ेद भू पर रक्तवर्णी कमल

    जिस दिन

    एक नारी की

    बलात्कार के बाद

    अपवित्र करार दी गई देह...

    प्रतिशोध की अग्नि

    जलाकर भस्म कर दिया था

    उसी दिन धरती की

    बाँझ होने की प्रक्रिया

    आंरभ हुई थी

    दर्ज़ होंगी इतिहास के पन्नों पर

    वो गीली चीख़ें आँसुओं से भरी

    कि जिस साल

    बीज बहे थे जलधारा में

    गद्दी पर बैठे राजा ने

    आश्वासनों को बाँधकर

    भेजा था काग़ज़ में

    जो मौसम की मार खाते-खाते

    किसानों तक पहुँचते-पहुँचते

    बह गए लालच के तूफ़ान में

    दर्ज़ होंगे इतिहास के पन्नों पर

    चमगादड़ बन लटके किसानों की लाशें

    दर्ज़ हो जाएँगी वो घटनाएँ

    जहाँ सवाल गूँगा बना था

    जवाब चाटुकारिता करते-करते

    गधों के पैरों में लेट गया था

    दर्ज़ होंगी इतिहास के पन्नों पर

    वो बेज़ुबान माली संसद के बगीचे का

    जो वायदों के बेरंग होते रंगों को

    संजो रहा है पौधे के गर्भ में।

    स्रोत :
    • रचनाकार : सरिता सैल
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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