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दक्षिण में प्रकृति की गोद में

dakshin mein prkriti ki god mein

अनुवाद : त्रिनेत्र जोशी

थाओ छ्येन

अन्य

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थाओ छ्येन

दक्षिण में प्रकृति की गोद में

थाओ छ्येन

और अधिकथाओ छ्येन

    छुटपन में नहीं लिया मज़ा मंडली का

    कामना रही बस शिखरों की

    ग़लती से फँस गया दुनियादारी के जंजाल में

    यों ही उलझा रहा तीस सालों तक

    कै़द पक्षी लौटने को बेताब अपने पुराने जंगल में

    पोखर की मछली जाना चाहती है फिर से अपने तालाब में

    मैं जाना चाहता हूँ अपने दक्षिण की ओर

    खेतों और बाग़ों में

    बस दस एकड़ ज़मीन मेरी अपनी

    घास-फूस से ढँके घर में आठ-नौ कमरे

    मज़बूत क़द-काठी वाले छायादार पेड़,

    ओरियों के पार सरपत वृक्ष

    बड़े कक्ष के दरवाज़े के सामने आडू और आलूचे के पेड़

    धुँधली दूरी पर एक गाँव

    हमेशा धुएँ के दामन में

    गली में कहीं भौंकता कुत्ता

    कुकुटाता है शहतूत पर बैठा चूज़ा

    दुनियादारी से मुक्त मेरा घर

    इतने कमरे अक्सर ख़ाली

    आख़िर कै़द से आज़ाद हुआ मैं

    फिर से अपनी प्रकृति में।

    स्रोत :
    • पुस्तक : सूखी नदी पर ख़ाली नाव (पृष्ठ 152)
    • संपादक : वंशी माहेश्वरी
    • रचनाकार : थाओ छ्येन
    • प्रकाशन : संभावना प्रकाशन
    • संस्करण : 2020

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