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मेरे पास से गुज़रते हुए

mere paas se guzarte hue

मारीना त्स्वेतायेवा

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मारीना त्स्वेतायेवा

मेरे पास से गुज़रते हुए

मारीना त्स्वेतायेवा

और अधिकमारीना त्स्वेतायेवा

    मित्रो, तुम सब मेरे पास से गुज़रते हुए जिस जादुई जगत की

    ओर जा रहे हो

    वह मेरा नहीं है, हालाँकि वह बड़ा ही है मन-मोहक,

    काश तुम जानते कि कितनी भारी आग, कितना विस्तृत जीवन

    व्यर्थ ही बरबाद होता रहा आज तक,

    व्यर्थ ही गया इतना वीरतापूर्ण उत्साह

    मात्र एक छाया को छूने और आहट को पाने में

    और अब मेरा दिल राख हुआ जाता है उस बारूद द्वारा

    जिसको मैंने व्यर्थ बरबाद किया सुरंगें लगाने में।

    आह, रात को चीरती हुई आगे बढ़ती ट्रेनें,

    जिन्होंने छीन लिया था नींद का क्षण

    हालाँकि मुझे विश्वास है कि तब भी

    तुम नहीं पहचान पाते—अगर तुम्हें विदित भी होता वह लक्षण—

    कि मेरे बोलने का ढंग इतना निर्भीक क्यों था

    और मेरे सिगरेट की स्थायी पफ़ों में जो घुमड़ती रही—

    उसमें कितनी उदास और ख़तरनाक हसरत थी

    जो मेरे सुकेशी मस्तक में सदा उमड़ती रही।

    स्रोत :
    • पुस्तक : आधुनिक रूसी कविताएँ-1 (पृष्ठ 70)
    • संपादक : नामवर सिंह
    • रचनाकार : मारीना त्स्वेतायेवा
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली
    • संस्करण : 1978

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