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उदासी भरा वर्ष गया है

udasi bhara warsh gaya hai

ज्याेति शोभा

अन्य

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ज्याेति शोभा

उदासी भरा वर्ष गया है

ज्याेति शोभा

और अधिकज्याेति शोभा

    सब अच्छे दिन गिन रहे हैं

    मैं गिन रही हूँ

    वैजयंती की पंखुरियाँ जो धूप में चलने से अटकी हैं

    तुम्हारे केशों में

    कौन कोसेगा सरकार को अभी

    जिस समय शकरकंद में रस घुल रहा है

    रोम पर स्पर्श के छोटे-छोटे गड्ढे सूर्य की तरह चमकते हैं

    और दिन इतने हल्के हैं कि

    साबुन के झाग भरे तुम्हारे कुर्ते की जेबों में मिल जाते हैं

    सब मुख धो रहे हैं अपने

    अच्छे लग रहे हैं सबको हिंदी अकादेमी के समारोह

    जिसमें कोई चार लोग हैं चार दिशाओं की तरह

    मुझे अच्छे लग रहे हैं

    सून सपाट से रास्ते जिस पर दिनों तक टिके रहते हैं सुलगते हुए सेमल

    और एक ही बस चलती है तुम्हें घर छोड़ने

    जेहलम की बर्फ़ अच्छी नहीं लग रही

    अच्छी लग रही है तुम्हारी भुजाओं की मछलियाँ

    जो छलछलाती है तुम्हारे जल पर

    साइकिल में हवा भरते हुए

    उदासी भरा वर्ष गया है

    मैंने केश नहीं काटे

    तुमने नख

    अपने दुःख बढ़ा लिए हमने

    किंतु राजा का मामला अलग है

    अच्छे दिनों में उसने नागरिक कम कर दिए

    बढ़ा लिए हैं भक्त

    इसे शिकायत समझो

    मुझे तुम्हारी आत्मा प्रिय है

    जिसमें कोई कीलें नहीं हैं

    एक संग गिर सकता है समाज

    कोई भी देश चोट खा सकता है

    बड़ी बात नहीं

    कि रेल के डब्बों में लंबी क़तार है पलायन के लिए

    मेरे लिए हल्दी है तुम्हारी देह

    उँगलियाँ वर्ष भर स्वर्ण हुई रहती हैं

    तुम्हारे आने से भूल गई

    अच्छे दिनों में होते हैं अच्छे देवता

    अस्पतालों की जगह मंदिर देते हैं

    अभी जब संसार पहन रहा है उचित धर्म

    मैं सिर्फ़ लाख के वे कंगन पहनने की जुगत में हूँ

    जो गले नहीं हैं

    और रक्त के रंग से अनभिज्ञ सुर्ख़ दीखते हैं।

    स्रोत :
    • रचनाकार : ज्योति शोभा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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