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दुखित मलय

dukhit malay

अनुवाद : राजेन्द्र प्रसाद मिश्र

गोपालकृष्ण रथ

अन्य

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गोपालकृष्ण रथ

दुखित मलय

गोपालकृष्ण रथ

और अधिकगोपालकृष्ण रथ

    अनुच्चारण से प्रारंभ

    तुम्हारी हमारी बातचीत

    मानो कोई बच्चा दिखाता हो

    अपनी वर्णमाला किसी दूसरे बच्चे को।

    कहाँ था सचमुच

    इतना बादल, इतना अँधेरा

    और फिर इतने चाँद!

    मादकता से भरपूर

    दिख नहीं रही थी राह।

    आघात सह नहीं पाओगी तभी

    गाए नहीं थे गीत मैंने

    साल दर साल,

    कहे नहीं थे तुतलाकर

    अपने भीगे-भीगे अक्षर।

    भाषाएँ अंकुरित होने से पहले ही तो

    आने लगी थी तुम्हारी महक

    भला में कहाँ से लाया होता

    बेणी बंधन का मंत्र!

    अब तो रेगिस्तान के उस पार

    दो फटी आँखें बन

    मैं याद कर रहा हूँ अपनी ग़लती के समय की

    लंबी-लंबी उसाँसों को

    खोई हुई परछाइयों को

    असहाय उद्वेग भरे क्षितिज में।

    अब हम लौट चलें

    भाषाहीन में।

    अब कुछ कहूँगा तभी तो

    तुम कहोगी पहले क्यों नहीं कहा

    बिन कहे लौट जाने पर

    क्या दोष दुर्बलताओं का होगा

    समय द्वारा सहेजी बातों का होगा,

    अपरिचित लहरों का होगा,

    या दुखित मलय का होगा!!

    स्रोत :
    • पुस्तक : विपुल दिगंत (पृष्ठ 94)
    • रचनाकार : गोपालकृष्ण रथ
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2019

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